पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत में सूफ़ी संत लाल शाहबाज़ क़लंदर की दरगाह पर एक आत्मघाती बम धमाके ने जो मंजर दिखाया, उसका दुख तो सबके दिलों में है, लेकिन हैरानी नहीं। हैरानी इसलिए नहीं क्योंकि आतंकिस्तान की एक बड़ी पहचान तो आतंक ही है। तो फिर क्यों सोचें की आखिर सुलगता पाकिस्तान कैसे बन गया आतंकिस्तान? कराची से लेकर इस्लामाबाद, और सिंध से लेकर पंजाब एवं पेशावर तक पाकिस्तान के नक्शे पर हर तरफ आतंकिस्तान का साया चस्पा है।
दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में पिछले 30 साल से कई आतंकी संगठन अफगानिस्तान की सीमा से लगे पाक क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जो समय-समय पर पाकिस्तान में हमलों को अंजाम देते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि आजकल इनकी सक्रियता पूरे सबाब पर है। इसे समझने के लिए हाल के समय में आतंकिस्तान में हुए कुछ आतंकी हमलों के आंकड़ों पर गौर कर लेते हैं।
7 अगस्त 2016- क्वेटा के सिविल हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड में एक आत्मघाती हमले में 70 लोगों की मौत हो गई। इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान ने ली।
1 सितंबर 2016 – खैबर पख्तूनख्वा इलाके में एक धमाके ने 13 लोगों को मौत की नींद सुला दिया। तालिबानियों ने बड़ी शान से हमले की जिम्मेदारी ली।
16 सितंबर 2016- एक मस्जिद में एक तालिबानी सुसाइड बॉम्बर ने खुद को उड़ा लिया जिससे 36 लोगों की मौत हो गई। यह ब्लास्ट जुमे की नमाज के दौरान किया गया।
17 अक्टूबर 2017- लियाकदाबाद इलाके में हुए एक ग्रेनेड ब्लास्ट में एक बच्चे की मौत हो गई। इस धमाके में लगभग 20 लोग घायल हो गए।
2 जनवरी 2017- बलुचिस्तान इलाके में रोड के किनारे हुए बम धमाके में छह लोग घायल हो गए।
21 जनवरी 2017- पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर के करीब धमाके की वजह 25 लोग मारे गए जबकि 87 घायल हो गए।
16 फरवरी 2017-सिंध प्रांत के सहवान कस्बे में स्थित लाल शाहबाज कलंदर दरगाह के भीतर आत्मघाती विस्फोट। करीब 100 लोगों की गई जान, ISIS ने ली जिम्मेदारी
इन हमलों के अलावा 2014 में पेशावर के एक स्कूल में हुई दहशतगर्ती तो अब भी कइयों को सोने नहीं देती।सच तो यह है कि यह आंकड़ों तो महज बानगी हैं। आतंकिस्तान की असलियत तो यह है कि यहां जनता हर वक्त आतंक के साये में जीती है। दीगर बात यह भी है कि इन हमलों में मौतों के बाद आतंकिस्तान के हुक्मरान तुरंत अच्छे और बुरे आतंकवाद में अंतर बताकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। मगर यह ना सोचिए की आतंकिस्तान में आतंक की वजह बस इतनी सी है। कई वजहे हैं एक राष्ट्र के आतंकिस्तान बनने की। थोड़ा इतिहास के पन्नों को भी उलट लेते हैं।
सन् 1979 में जब सोवियत संघ रूस ने अफगानिस्तान पर चढ़ाई की तो पाकिस्तान इस्लामी योद्धाओं का सबसे बड़ा अखाड़ा बन गया। इन्होंने रूस के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। इन्हें अमेरिका का समर्थन प्राप्त था। इनमें से कई तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से भी मिले थे। बाद में अमेरिका ने ही हक्कानी नेटवर्क को आतंकवादी संगठन घोषित किया। उस वक्त पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में लड़ने के लिए ओसामा बिन लादेन सहित बहुत से आतंकवादियों को प्रोत्साहित किया।
रूस 1989 में अफगानिस्तान से निकल गया और प्रॉक्सी सरकार भी अधिक दिन नहीं टिकी।अब पाकिस्तान में बहुत से आतंकवादी समूह फलफूल रहे हैं। इनमें से कुछ ने पाकिस्तानी सरकार और सेना के खिलाफ ही युद्ध का छेड़ दिया है। जैसे, पाकिस्तानी तालिबान, तहरीक-ए-तालिबान, जमात-उल-अहरर। ये संगठन सरकार को उखाड़कर वहां अपने मुताबिक इस्लामी कानून लागू करना चाहते हैं।
आतंकिस्तान की सेना भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। हालात यह हैं कि पाकिस्तान में बड़ी संख्या में कई आतंकवादी संगठन मौजूद हैं, इनमें से कुछ सरकार को अस्थिर करने के लिए सेना के साथ कदमताल कर रहे हैं। दूसरा एक अहम कारण यह भी है कि पाकिस्तान का आतंकवादियों के साथ रिश्ते बेहद जटिल हैं। शक्तिशाली सेना कुछ आतंकवादी संगठनों का इस्तेमाल भारत समेत दूसरे देशों के खिलाफ करती रही है। यहां कई सरकारों ने कट्टरपंथियों के समर्थन के लिए उनके विचारों को बढ़ावा दिया है।
इन तमाम बातों को इतर पाकिस्तानी हुक्मरानों के लिए अब शायद आतंक के आंकड़े और आतंक फैलाने की वजहें चिंता की विषय नहीं रह गई हैं। उन्हें चिंता है चीन से किसी भी कीमत पर रिश्ते बनाने की, चिंता है भारत के साथ कश्मीर मुद्दे को उलझाने की, होड़ लगी है हथियार और आतंकी बढ़ाने की, और ब्लूचिस्तान जैसे प्रांतों को सुलगाने की। जाहिर है इन सब के बीच अगर आतंकिस्तान में मातम पसरता है तो पसरे…हुक्मरानों आतंक पर मातम क्यों करें…?