नब्बे के दशक के में सामाजिक आंदोलन के प्रणेता लालू प्रसाद यादव सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से एक बार फिर मुश्किलों में हैं|दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस फैसले के बाद उनकी राजनीतिक जीवन का एक नया दौर फिर से शुरु हो गया है|सुप्रीम कोर्ट ने 21 साल पुराने 950 करोड़ के चारा घोटाले के सभी चारों मामलों में लालू प्रसाद यादव पर अलग-अलग मुकदमे चलाने के निर्देश दिए हैं|यह वही मामला है जिसमें साल 2014 में झारखंड हाईकोर्ट ने यह कहकर रोक लगा दी थी कि एक ही मामले में एक ही व्यक्ति पर समान गवाहों के साथ अलग-अलग केस नहीं चल सकता|अदालत ने इस मामले में सारी कार्रवाई एक तय सीमा के अंदर कराने की भी बात कही है|लालू प्रसाद इस मामले में पहले से ही सजायाफ्ता है और फिलहाल जमानत पर हैं| उन्हें 2013 में इसी घोटाले के एक मामले में सजा के बाद सांसद का पद गंवाना पड़ा था और एक तय अवधि तक चुनाव लड़ने पर रोक भी लग गई थी|उसी समय माना ये गया था कि लालू प्रसाद की राजनीति अब खत्म हो गई,लेकिन राजनीति में उनकी भूमिका बनी रही|साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी प्रासंगिकता क्या रही ये सभी जानते हैं|सत्ता से बाहर रहते हुए भी उन्होंने अपने दल को सबसे ज्यादा सीट जीतवाने के लिए कड़ी मेहनत की और सफल भी हुए|लेकिन ताजा फैसले के बाद अब उनकी राजनीति क्या करवट लेगी इसके लिए हमें कुछ दिन इंतजार करना होगा|
फिलहाल लालू प्रसाद की राजनीति पर तात्कालिक तौर पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा|लेकिन ताजा फैसले ने उनकी चिंताएं जरुर बढ़ा दी हैं||लालू प्रसाद के दोनों पुत्र वर्तमान सरकार में मंत्री हैं उन्हें राजनीति के मैदान में कैसे दमदार तरीके से स्थापित किया जाए इसकी चिंता उन्हें जरुर होगी|पिछले कुछ दिनों से दोनों पुत्रों सहित खुद पर कथित तौर पर लगाए गए मिट्टी घोटाला का जिन्न अभी शांत भी नहीं हुआ था कि कथित तौर पर लालू-शहाबुद्दीन के बीच बातचीत का ताजा टेप उनकी परेशानी को कम करने की बजाए बढ़ाने वाला ही निकला|फिलहाल वो विपक्ष के निशाने पर हैं, और ताजा मामला विपक्ष के आरोपों-प्रत्यारोपों को और धार देगा | सुप्रीम कोर्ट का फैसला लालू से ज्यादा गठबंधन पर कितना असर डालेगा ये देखने वाली बात होगी|जिस तरह महागठबंधन के बड़े साथी लालू प्रसाद की बचाव की बजाए अपनी छवि के लिए ज्यादा सतर्क दिखे इससे भविष्य के संकेत साफ दिखाई देते हैं|
यह फैसला खुलासे के 21 साल बाद आया है और वो भी अंतिम फैसला नहीं है यानि अभी इस मामले में बहुत कुछ बाकी है|चार अलग अलग मामलों में अलग अलग सुनवाई होगी और फिर फैसले का एलान होगा यानि तात्कालिक तौर पर कुछ नहीं होने जा रहा|अदालत ने सुनवाई की समय सीमा जरुर तय कर दी है लेकिन इतने चर्चित मामले पर इतनी देरी क्यों हुई इस पर भी बहस होनी चाहिए|लेकिन इतना तो जरुर है कि ताजा फैसले से बिहार की राजनीति ही नहीं,देश की राजनीति पर भी इसका असर देखने को जरुर मिलेगा कारण कि कुछ ही महीनों में राष्ट्रपित पद का चुनाव होना है और लालू प्रसाद बीजेपी को मात देने के लिए विपक्ष की एकता की कोशिश में हैं|ऐसे में ये देखना जरुरी होगा कि ताजा फैसले से कितने लोग उनके साथ जुड़ते हैं या फिर लालू प्रसाद से दूरी बनाने की कोशिश करते हैं|