नई दिल्ली। 21 मई 1991 एक ऐसा दिन जिसने पूरे देश को हैरान कर दिया। कुछ समय के लिए लोग समझ ही नहीं पाए की आखिर ये क्या हुआ… हर तरफ बस लोग जान बचाओ-जान बचाओ कहकर भाग रहे थे। किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि, क्या, क्यों और कैसे हुआ ये हादसा।
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हादसे से सहमे लोग
हादसा राजीव गांधी की मौत का… जिसने पूरे देश में एक दहशत पैदा कर दी थी। हर कोई उस हादसे के बाद सहमा हुआ था। जिस व्यक्ति को कुछ समय पहले लोग टीवी पर देख रहे थे, अभिभाषण देते हुए… उन्हें किसी एक अंजान महिला ने मौत की नींद सुला दिया था। ये हादसा याद करते हुए आज भी कई लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। एक ब्लास्ट और राजीव गांधी की जिंदगी खत्म… उस ब्लास्ट के बाद हर तरफ एक शांति… ऐसा लग रहा था जैसे कानों के पर्दे फट गए हो… और कुछ सुनाई नहीं दे रहा।
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गांधी परिवार में फिर शोक की लहर
इस खबर के बाद जितनी हैरान देश की जनता थी… उतना ही हैरान उनका परिवार भी था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि, जिस इंसान को उन्होंने सुबह तक ठीक देखा था, उसके साथ ऐसा कैसे हो गया। राहुल और प्रियंका बस रो रहे थे, और सोनिया उन्हें संभाल रही थी… उनके पास शब्द नहीं थे उस पल के लिए। वो बस राजीव गांधी की डेड बॉडी का इंतजार कर रहे थे। इंतजार की वो घड़ी वो पल उनके लिए समय के साथ-साथ कठिन होता जा रहा था। एक-एक पल पिता की वो हर एक बात याद कर रहे थे… राहुल और प्रियंका।
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शव के इंतजार में तीन मूर्ति से वीरभूमि तक खड़े थे लोग
राजीव गांधी के शव के अंतिम दर्शन के लिए लोग काफी समय से इंतजार कर रहे थे। गर्मी को झेलते हुए शोकाकुल दिल्ली सड़कों से हिलने का नाम नहीं ले रही थी। सब नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दे रहे थे। इन्हीं सड़कों से पहले पंडित जवाहरलाल नेहरु, इंदिरा गांधी और संजय गांधी की शव यात्राएं निकलीं थीं। तब भी सड़कों पर लाखों लोग खड़े थे। इसी मार्ग से महात्मा गांधी की भी शवयात्रा निकली थी। तब कहते हैं कि सैकड़ों लोग अपने घरों से अंत्येष्टि के लिए घी लेकर आए थे। हजारों ने अपने सिर मुंडवाए थे।