लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी और नीतीश की जोड़ी ने बिहार ऐसा कारनामा कर दिखाया की झोली में सीधे 40 में से 39 सीट आ गई एक सीट केवल कांग्रेस ने किशनगंज से जीती. बिहार में 1977 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब लालू चुनाव और चुनाव प्रचार से दूर हैं। 1977 में पहली बार छपरा से 29 साल के लालू ने लोकसभा चुनाव जीता था उसके बाद वो हर चुनाव में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे इस बार उन्होंने प्रचार नहीं किया तो उनकी पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पायी |
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मोदी और नीतीश की जोड़ी हुई हिट
बिहार में इस बार मोदी और नीतीश की जोड़ी ने कमाल कर दिया है 40 में से 39 सीट लेने का श्रेय उनकी मेहनत और बहुत सारी रैलिओ को भी जाता है | इस जीत के बाद नीतीश ने कहा की अब हमारी जिम्मेदारी पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गई है |
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महागठबंधन भी नहीं दिला पाया जीत
चुनाव से पहले सबको लग रहा था महागठबंधन काफी अच्छा करेंगे परन्तु ऐसा हो नहीं पाया,६ पार्टी आरजेडी, कांग्रेस, रालोसपा, हम, वीआईपी और सीपीआईएम ने गठबंधन करके बीजेपी को हराने की तैयारी की लेकिन मोदी के जादू के आगे इनकी एक ना चली | कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और आरजेडी के तेजस्वी यादव ने अपनी संयुक्त रैली भी काफी देर से शुरू करी आपस में ताल मेल की भी काफी कमी दिखाई दी |
लालू की कमी क्यों खली
1977 से बिहार में राजीनीति की शुरुआत करने वाले लालू के लिए बड़ी मशहूर कहावत है की “जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक बिहार में रहेगा लालू ” | वो ऐसी शख्सियत है जिसने 2014 में मोदी की लहर के सामने भी आरजेडी को ४ सीटों पर विजय दिलायी थी | लालू बिहार की जनता को बहुत अच्छी तरह से जानते है और एक सफल और कुशल नेतृत्व को करना जानते है , जो इस बार के चुनाव में महागठबंधन की सबसे बड़ी कमी उभर के आई | तेजस्वी यादव के अंदर एक कुशल नेतृत्व की कमी देखने को मिली |