साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की कमान संभाली थी तो ये आशा थी कि इनके शासन काल में अनसुलझा कश्मीर मसला सुलझ जाएगा| इसके पीछे तर्क ये था कि इनकी भूमिका एक कठोर नीति निर्माता के तौर पर रही है| शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को न्योता देने के पीछे ये संदेश देना था कि कश्मीर समस्या के हल के लिए वो एक कदम आगे बढ़ने को भी तैयार हैं| फिर कश्मीर के चुनाव में विपरित परिस्थितियों और विचारधाराओं के बीच सरकार बनाना भी संकेतों में कह गया कि मोदी सरकार इस समस्या को लेकर गंभीर है| और वो पीडीपी के साथ मिलकर राज्य में शांति के लिए गंभीर प्रयास करेगी| लेकिन शांति बहाली की बजाए कश्मीर में अशांति फिर से लौट आई| ऐसे में लोग ये आकलन करने में लगे हैं कि आखिर मोदी की कश्मीर नीति में कहां चूक हो रही है| आतंकी अपनी मर्जी से हमले कर रहे हैं,हथियार छीन रहे हैं,हमारे जवानों की जानें जा रही हैं वादी के हर ओर पत्थरबाज अपनी मर्जी के मुताबिक सेना को निशाना बना रहे हैं| आतंकी बच्चों के स्कूलों को तबाह कर रहे हैं उन्हें आग के हवाले कर रहे हैं| लेकिन वहां की बीजेपी-पीडीपी की सरकार हो या चाहे केंद्र की मोदी सरकार,ऐसे तमाशों को देखने के सिवाए कुछ ठोस नहीं कर पा रही है| स्थानीय सरकार महज घटनाएं रोकने का दावा कर कुछ ठोस करती नहीं दिखाई दे रही है| और इसका खामियाजा कश्मीरियों को भुगतना पड़ रहा है| धरती का स्वर्ग कही जाने वाली कश्मीर की वादी में अजीब सा सन्नाटा है| डल झील में सैलानियों को स्वर्ग जैसी सुंदरता का दीदार कराने वाली बोटें उनका बाट जोह रही हैं,होटल व्यवसाय चौपट हुआ पड़ा है लेकिन व्यवस्था में सुधार कैसे हो उसका कोई निकट में भविष्य नहीं दिखाई पड़ रहा है|
सेना के जवान मारे जा रहे हैं,सीमा पार घुसपैठ चरम पर है,आतंकियों के हमदर्दों की तादाद में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है लेकिन इसका हल नहीं दिख रहा है| कश्मीर हिंसा में मारे गए,जख्मी हुए या अंधे हो चुके लोगों के लिए मातम मना रहा है| लगातार हो रही हिंसा ने कश्मीर वादी की जिंदगी को पटरी से उतार दिया है,बच्चे स्कूल जलाए जाने के चलते घरों में पढ़ाई को मजबूर हैं| स्कूलों में ये आग कौन लगा रहा है इसकी भी पूरी जानकारी सरकार के पास नहीं है| नए छात्रों का भविष्य चौपट हो रहा है,आखिर इस हिंसा का अंत क्यों नहीं है| उधर सीएम महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि केंद्र सरकार को कश्मीर में शांति बहाली के लिए वाजपेयीजी की नीतियों को आगे बढ़ाना चाहिए और सभी पक्षों से बातचीत करनी चाहिए|
अब बड़ा सवाल उठता है कि आखिर बातचीत की जाए तो किससे अलगाववादियों से या फिर हुर्रियत से जिनके भड़काऊ भाषणों के चलते वादी की हालत और खराब ही हुई है| केंद्र सरकार कहती है कि वो अलगाववादियों से बातचीत नहीं करेगी,वो हुर्रियत से बातचीत करेगी भी तो भारतीय संविधान के दायरे में| ऐसे में कश्मीर का भविष्य क्या है ये बड़ा सवाल है| क्या हम अपनी-अपनी बातों की दुहाई देकर कश्मीर को जलता छोड़ सकते हैं? कतई नहीं| वो भारत का अविभाज्य अंग है अगर वहां परेशानी है तो पूरा देश परेशान है| नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दावा किया गया था कि इससे आतंकवादियों की कमर टूट जाएगी| कश्मीर में पत्थरबाजों की गतिविधियों पर रोक लग जाएगी| लेकिन आतंकी हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं|
अभी तक तो कश्मीर के कथित तौर पर बेरोजगार युवा ही सेना पर पत्थरबाजी करते थे लेकिन कुछ दिनों में घाटी की लड़कियां भी सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी और भारत विरोधी नारे लगाने में शामिल होने लगी हैं| ये निश्चित तौर पर गहरी चिंता का विषय है| अब ये सवाल उठता है कि आखिर कश्मीर के पत्थरबाज नौजवान या फिर हाथों में हथियार उठा कर चले पड़े लोग किससे और किस बात की लड़ाई लड़ रहे हैं? क्या अलगाववादियों की कट्टर विचारधारा ने उनके जेहन को इतना अपाहिज बना दिया है कि उनके सोचने की क्षमता खत्म हो चुकी है?सीमा पर लगातार आतंकी हमलों और जवानों की दुखद शहादत के बीच सवाल यह उठता है कि जिस नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि अब आतंकी हमले नहीं होंगे,उस दावे का क्या हुआ?अलगाववादी सोच वाले कथित बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने कश्मीर में तैनात सुरक्षाकर्मियों के बारे में नकारात्मक छवि बनाने की मुहिम छेड़ रखी है| जब भी पैलेट गन या जवाब कार्रवाई में कश्मीरी नागरिकों की मौत होती है,तब यही माहौल बनाया जाता है कि भारतीय सुरक्षा बल वहां दमन कर रहे हैं जबकि हकीकत यह है कि राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी जम्मू-कश्मीर पुलिस की है,जिसमें बहुसंख्यक जवान राज्य के ही निवासी हैं|
पिछले साल जुलाई तक घाटी में 152 आतंकी वारदात हुई, जिनमें 30 जवान शहीद हो गए| जाहिर है कि पिछले साल जुलाई के बाद आतंकी वारदात और हिंसक प्रदर्शनों की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई है| बहुत से कश्मीरी युवाओं ने बंदूकें थामी है तो सुरक्षा बलों के जवानों के शहीद होने का सिलसिला भी बढ़ा है| इसकी बड़ी वजह पथराव करने वाली युवाओं की गुमराह भीड़ ही है| सच्चाई ये भी है कि अलगाववादियों ने हमेशा घाटी में चुनाव बहिष्कार की अपीलें की है,लेकिन इससे पहले इतना असर नहीं देखा गया| श्रीनगर उपचुनाव में केवल सात फीसदी वोटिंग चुनाव बहिष्कार की अपील का ही नतीजा है? हरगिज नहीं| बड़े पैमाने पर हिंसा की सुनियोजित साजिश नहीं होती,तो इतनी कम वोटिंग नहीं होती| ये आम बात है कि कोई भी आदमी जान हथेली पर रखकर वोट करने नहीं निकलेगा| इसे अलगाववादियों और आतंकियों के हिंसक गठजोड़ के सबूत के तौर पर महसूस किया जाना चाहिए|
आम भारतीयों को लगता है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का घाटी में काफी असर है,लेकिन हकीकत ऐसी नहीं है| जब कश्मीर समस्या की बात आती है तो लोगों के जेहन में घाटी के सियासी दल,अलगाववादी,आतंकवादी और सुरक्षाबलों की ही तस्वीर उभरती है| लेकिन ऐसी बात नहीं है,जब हम पूरे कशमीर की बात करते हैं तो उसमें सारे स्टेकहोल्डर की बात आती है| ये वो पक्ष हैं जो कश्मीर की रगों में बसे हुए हैं,मसलन वहां के स्कूल एसोसिएशन,व्यापार मंडल, पर्यटन व्यवसाय से जुड़े होटल,बुद्धिजीवी,शिक्षक संगठन वगैरह| इनमें से कोई नहीं चाहता कि घाटी में अशांति हो,क्योंकि इससे उनके कारोबार पर असर पड़ता है| अगर इन सभी वर्गों के प्रतिनिधियों से गंभीरता से बात की जाए,तो कोई ठोस उपाय सामने आ सकते हैं|