ब्रिटिश डायरेक्टर जेम्स अर्सकिन की यह फिल्म क्रिकेट के भगवान सचिन तेंडुलकर की कहानी उन्हीं की जुबानी कहती है. अजहरूद्दीन और एम.एस. धोनी की बॉलीवुड स्टाइल बायोपिक के उलट “सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स” के सेंटर में मास्टर ब्लास्टर खुद हैं| यही बात फिल्म को स्पेशल भी बनाती है| कहानी दस साल के बच्चे की है| जिसके लिए एक सामान्य खेल पैशन बन जाता है और इस पैशन का रिजल्ट आता है 2011 में जब भारत क्रिकेट वर्ल्ड कप जीत जाता है| नन्हे सचिन का कोच आचरेकर के पास जाना, दिग्गज गेंदबाजों के परखच्चे उड़ाना, अंजली से प्रेम, क्रिकेट में सट्टेबाज़ी और पिता के निधन के तुरंत बाद सेंचुरी जमाना कई ऐसे क्षण है जो पैशन, एक्शन और इमोशन को भरपूर हवा देते है|
रूटीन बॉलीवुड फिल्मों से हटकर यह एक अच्छा एफर्ट है| बार-बार सचिन और उनकी आवाज नॉस्टेल्जिक बनाती है| सचिन ऐक्टर नहीं हैं, लेकिन जितने सिंपल, पैशनेट और इनोसेंट वे क्रिकेट के मैदान में रहे, उतने ही फिल्म में भी हैं| लेकिन फ़िल्म में ए.आर. रहमान का म्यूज़िक बहुत ही औसत है. लेकिन डायरेक्टर ने जिस सयानेपन से विजुअल और सचिन का इस्तेमाल किया है वो फ़िल्म को सालिड बनाने का काम करता है|
क्रिकेट के भगवान की लाइफ के अनजाने पहलू और क्रिकेट में इमोशंस का छौंक लगाने वाले शख्स को जानने के लिए “सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स” एक शानदार फिल्म है. यह फ़िल्म सचिन के जुनून और जज्बे को सैल्यूट करती है| यह उन लोगों के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है जो सचिन युग के गवाह नहीं रहे हैं और उनके लिए भी पुरानी यादों को ताज़ा करने का मौक़ा है जिन्होंने सचिन के साथ लगभग ढाई दशक जिए है|