बिहार सरकार राज्य में छात्र-छात्राओं की शिक्षा में कैसे सुधार हो इसके उपर सबसे ज्यादा खर्च करती है| छात्र-छात्राओं को शिक्षा की तरफ मोड़ने के लिए स्कूलों में तरह-तरह की योजनाएं लागू की गयी हैं मसलन मिड डे मील,साइकिल राशि ,पोशाक राशि,छात्रवृति जैसी चीजें उपलब्ध कराकर सरकार छात्रों के मन में शिक्षा के प्रति लगाव पैदा करना चाहती है| लेकिन साल 2017 के इंटर के रिजल्ट पर गौर करें तो सरकार की ये कोशिश कामयाब होती नजर नहीं आती है| पिछले साल की किरकिरी के बाद इस बार शिक्षा विभाग जागा और कदाचार मुक्त परीक्षा का आयोजन हुआ यहां तक कि कॉपियों की अलग तरह से कोडिंग की गयी जिससे कॉपियों में पैरवी करने वालों पर लगाम लगायी जा सके| मतलब है कि सरकार ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की और वो कोशिश कामयाब भी हुई| लेकिन रिजल्ट का प्रतिशत चौंकाने वाला है और वो ये सोचने पर मजबूर करता है कि क्या पिछले सालों के रिजल्ट परसेंटेज कदाचार पर ही निर्भर थे? सरकार की तरफ से कदाचार की छूट पर ही वो सारी इमारत खड़ी थी| हम ये भी नहीं कह रहे कि सरकार ने कदाचार की छूट दे दी लेकिन जरा पिछले साल के पास परसेंटेज और इस साल का पास परसेंटेज की तुलना कीजिए सारी बातें अपने आप नजर आने लगती हैं| जरा आंकड़ों पर नजर डालिए और खुद तुलना कीजिए-
साइंस- 67.06 — 30.11
कॉमर्स- 80.87 — 73.76
आर्ट्स- 56.73 — 37.13
आंकड़ों को देख ताज्जुब भी होता है और सरकार की नीतियों पर सवाल भी उठते हैं| पिछले साल जहां साइँस में 67 फीसदी छात्रों ने सफलता पायी उसमें एक साल में आधे से ज्यादा की गिरावट आ गयी| सभी संकायों के रिजल्ट में गिरावट का रुझान है| सवाल उठता है कि आखिर एक साल में पढ़ाई का स्तर इतना नीचे गिर गया, बिल्कुल नहीं| पास करने का ये सारा खेल कई जगहों से तय होता था जिसपर इस साल लगाम लग गयी और असली रिजल्ट सबके सामने हैं|
दरअसल इससे घबराने की भी जरुरत नहीं है और जरुरी है इस माहौल को बनाए रखने की जिससे आगे भी कम ही प्रतिशत छात्रों का रिजल्ट हो लेकिन वो पक्का हो|