सूबे में स्वास्थ्य व्यवस्था के दावे बड़े बड़े लेकिन हकीकत साफ इसके उलट | अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की क्या हालत है इससे सब वाकिफ हैं, कहीं अस्पताल तो डॉक्टर नहीं, कहीं डॉक्टर तो दवा नहीं| इसकी चर्चाएं तो रोजाना हैं लेकिन सूबे के अस्पतालों में मरीज के मरने के बाद भी जरुरी सरकारी सुविधाएं उपलब्ध नहीं| जरा हाल जानिए राज्य के एक बड़े शहर पूर्णिया के सदर अस्पताल का| एक बुजुर्ग महिला को इलाज के लिए उसके परिजन दो दिन पहले ही भर्ती करते हैं| गंभीर हालत में भर्ती उस महिला की मौत हो जाती है और उसके मरने के बाद शुरु होता है असंवेदनाओं का खेल| मरीज के परिजन शव को ले जाने के लिए अस्पताल प्रशासन से शव वाहन देने की गुहार लगाते हैं, लेकिन जहां संवेदनाएँ ही मर जाएं वहां किसी की गुहार का भला क्या असर होगा! परिजन अस्पताल प्रशासन से गुहार लगाते-लगाते थक गए लेकिन अस्पताल प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी| आखिरकार थक हार कर महिला के बेटे ने शव को बाइक से ही घर ले जाने का फैसला कर लिया| किन परिस्थितियों में उसने ये फैसला लिया होगा इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है| महिला के बेटे ने उसके शव को गमछे से अपने पेट से बांधा और पीछे अपने पिता को उसे संभालने के लिए बैठाया| रास्ते भर परेशानी उठाता हुए दोनों पिता और पुत्र मोटरसाइकल से ही शव को लेकर गांव पहुंचे|
अब शुरु होता है ब्लेम गेम का खेल जब ये खबर जिला प्रशासन के कानों तक पहुंची तो आनन-फानन में जिलाधिकारी ने मामले की जांच के लिए कमेटी गठित कर दी, जो अपनी रिपोर्ट सोमवार तक देगी।
सिविल सर्जन ने पल्ला झाड़ा
इस संबंध ने सिविल सर्जन ने कहा कि सदर अस्पताल में आउटसोर्सिंग एजेंसी के माध्यम से शव वाहन उपलब्ध कराया जाता है, जो बीपीएल परिवारों के लिए निश्शुल्क होता है। इसके लिए अस्पताल प्रबंधन से इसकी मांग की जाती है। सिविल सर्जन ने कहा कि मृतक के परिवार ने शव वाहन की मांग नहीं की थी।