वैसे तो लोग मानसून का नाम सुनकर झूम उठते हैं लेकिन बिहार के कुछ इलाकों के लोग बाढ़ का नाम सुनकर सिहर भी जाते हैं| लेकिन सूबे का एक गांव ऐसा है जो हर साल नदी में बाढ़ आने का इंतजार करता है| जानकर चौंक जाएंगे आप, और सोचेंगे कि भला लोग बाढ़ आने का इंतजार क्यों करते हैं? तो हम आपको बताते हैं इसका कारण| दरअसल ये बाढ़ कुछ लोगों के लिए साल भर की रोजी रोटी लाती है जिससे लोग अपना और परिवार का पेट पालते हैं| तो चलिए इस रहस्य से पर्दा उठा ही देते हैं!
दरअसल पश्चिम चंपारण इलाके में बहने वाली नदियां सोना उगलती हैं और इसी सोने को जमा करने के लिए यहां के स्थानीय निवासी नदियों में बाढ़ के आने का इंतजार करते हैं|कहा जाता है कि हर साल मानसून के दिनों में यहां बहने वाली नदियों में सोना मिलता है और ये लोग उस सोने को चुनते हैं| ये नदियां बलुई, कापन और सोनहा| जो हर साल अपने साथ सोना बहाकर लाती हैं| इनके पानी से सोना छानकर इन गांवों के लोग साल भर की रोजी-रोटी का जुगाड़ कर लेते हैं| लेकिन यह काम इतना आसान नहीं होता है| बिहार में मानसून के समय बाढ़ हमेशा बड़ी समस्या रही है| ये नदियां भी इस मौसम में खूब उफनाती हैं| गांव के लोग बाढ़ कम होने का इंतजार करते हैं, जब पानी कम हो जाता है तो कुछ खास उपकरणों के साथ नदी में उतर जाते हैं और वह नदियों द्वारा बहाकर लाई बालू और कणों को छानकर सोने के कण निकालते हैं फिर उसे बाजार में बेचते हैं| हालांकि यह काम इतना आसान भी नहीं होता है|
कई सालों से चल रहा काम
यह काम इन इलाकों में काफी सालों से चलता चला आ रहा है| पहाड़ी नदियों से सोना निकालने का काम आदिवासी कई पीढ़ियों से कर रहे हैं| कई बार ऐसा होता भी कि लोग दिन भर बालू और कणों को छानते रहते हैं लेकिन हाथ भी कुछ भी नहीं आता है|
नहीं मिलता है वाजिब दाम
सोना चुनने वाले लोगों को शिकायत है कि इतनी मेहनत के बाद भी उन्हें सोना का वाजिब दाम नहीं मिल पाता है| वो कहते हैं कि जब वो लोग बाजार में इन सोने के कणों को बेचने जाते हैं तो वहां पर पहले जौहरी इन कणों का इकट्ठा करता है फिर एक गोला बनाकर औने-पौने दाम लगाता है|