सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अशोक चक्र’ से सम्मानित हरीश भनोट के यहाँ जब वीरांगना ‘नीरजा भनोट’ का जन्म आज ही के दिन यानी 7 सितंबर 1963 को हुआ था तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान इस बच्ची को मिलेगा।
बचपन से ही इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा रहती थी। नीरजा ने अपनी इच्छा एयर लाइन ज्वाइन करके पूरी की। 16 जनवरी, 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे। नीरजा पैन एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगीं। 5 सितम्बर, 1986 की वह घड़ी आ गयी थी, जहाँ नीरजा के जीवन की असली परीक्षा होनी थी। पैन एम 73 विमान कराची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठेे थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर अपने कब्जे में ले लिया। उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वह जल्द में जल्द विमान में पायलट को भेजे। किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। तब आतंकियों ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वह सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करें ताकि वह किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके।
नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे। किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि विमान में ईंधन किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा। जल्दी ही उन्होंने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा। नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं।
विमान का ईंधन समाप्त हो गया और चारों ओर अंधेरा छा गया। अंधेरा होते ही तुरन्त उन्होंने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही सारे यात्री तुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे। अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी, किन्तु तभी उन्हें बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थीं और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगीं। तभी अचानक बचा हुआ चौथा आतंकवादी उनके सामने आ खड़ा हुआ। नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गईं। आतंकी ने कई गोलियां उनके सीने में उतार डालीं। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चौथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को न बचा सके।
अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए नीरजा अपनी जान की बगैर परवाह किए सारे विमान यात्रियों को सुरक्षित बचा लिया और खुद आतंकियों का शिकार हो गई ।
नीरजा भनोट के इस बलिदान को देखते हुए भारत सरकार ने उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अशोक चक्र’ प्रदान किया तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सरकार ने भी अपना सर्वोच्च सम्मान ‘तमगा-ए-इन्सानियत’ प्रदान किया। वर्ष 2005 में अमेरिका ने भी उन्हें ‘जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड’ दिया।
उनपर बनी बॉलीवुड फिल्म ‘नीरजा’ को भी लोगों ने खूब पसंद किया। इस फिल्म में नीरजा का किरदार मशहूर अभिनेत्री सोनम कपूर बखूबी निभाया।।