दुनिया आतंकवादियों के ‘रक्तचरित्र’ को जानती है। सबको मालूम है कि आतंकवादी बंदूक की नोक पर युवाओं और बेगुनाहों के लहू से जिहाद लिखने को बेताब हैं। लेकिन सच यह है कि अब यह दहशतगर्द भी समझ गए हैं कि ना तो उनकी इस बेकरारी को कभी करार मिलने वाला है और ना ही वो लहू के समंदर से जेहाद का मंथन कर पाने में कभी कामयाब हो सकेंगे। इसमे कोई शक नहीं कि पिछले कुछ सालों में आतंकवादियों ने पाकिस्तान, ब्रिटेन, अमेरिका, और भारत समते दूसरे कई देशों में जो दहशतगर्दी फैलाई है उसके जख़्म अरसे तक नहीं भरेंगे। लेकिन अगर नई सोच और नए नज़रिये से देखें तो ये दहशतगर्द खुद भी कितनी दहशत में हैं इसका अंदाजा हमे लग जाएगा। मिस्र में जुमे की नमाज के वक्त अपने ही लोगों पर कायरता आतंकियों के हताशा और उनकी डरी हुई मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है। सच यह है कि मिस्र में आतंकी आम लोगों के बीच अपना पैग़ाम-ए-दहशत पहुंचा पाने में लगातार बुरी नाकाम हो रहे थे और यह हमला इसी नाकामी की प्रतिक्रिया है। मिस्र एक सुन्नी बहुल देश है और सुन्नी लोग किसी तरह के आतंक को गुनाह समझते हैं। सूफी मत में खुदा को अपने भीतर तलाशने का स्पष्ट सिद्धांत है। खास यह भी है कि इसमें आत्मा और ईश्वर को एक ही माना गया है जबकि आतंकी इस विचारधारा के खिलाफ हैं। यही वजह है कि दुनिया भर में उदारवादी सुन्नी हमेशा ही खूंखार आतंकियों के निशाने पर रहते हैं। मिस्र में रहने वाले सुन्नी मत के लोगों के बीच आतंकी अपने खून-खराबे और जेहादी विचारों का प्रचार करना चाहते थे। लेकिन यहां लोगों ने आतंकियों के इस सोच को सिरे से नकार दिया। इतना ही नहीं युवा वर्ग अब सुन्नी विचारों से प्रभावित होकर आतंक की राह त्याग कर मुख्यधारा में भी लौट रहे हैं। बस यही बात दहशतगर्दों को अंदर ही अंदर खल गई है। उन्हें डर है कि अगर सुन्नी विचारधारा का प्रभाव यूं ही बढ़ता रहा तो फिर उनकी इस जेहाद की लड़ाई का अंत नजदीक हो जाएगा। सीरिया, जॉर्डन, यमन, और पाकिस्तान में हुए हालिया आतंकी हमले भी आतंकवादियों के इसी डर का नतीजा है।
ISIS समेत दुनिया भर के आतंकी संगठन इस वक्त डरे हुए हैं। इस बात को समझने के लिए सीरिया से बेहतर उदाहरण और कुछ हो ही नहीं सकता। जिस इस्लामिक संगठन को कभी मीडिया में खूंखार, खतरनाक और दहशतगर्दों की फौज कहा जाता था वहीं इस्लामिक संगठन अब अलेप्पो और रक्का जैसे शहरों से दुम दबाकर भाग चुका है। अभी आपके जेहन से सीरिया मेें हुए कत्ले-आम की तस्वीरें धुंधली नहीं प़ड़ी होंगी, जिसमें ये (ISIS) आतंकी खुलेआम सड़कों पर हथियार लहराते, गोलियां बरसाते और टैंक की नोक पर आतंक फैलाते नजर आ रहे थे। सीरिया में आईसिस के कितने लड़ाकू थे इसकी पूरी जानकारी वैसे तो किसी के पास नहीं, लेकिन कुछ समय पहले तक कहा जाता था कि इनकी तादाद हजारों में है औ वो सीरिया की सड़कों पर खुलेआम घूमते हैं। लेकिन कई सालों तक चले खूनी संघर्ष के बाद आतंकी अब वहां छिप-छिप कर रह रहे हैं। यहां सेना की कार्रवाई में कई आईसिस लड़ाकू ढेर हो गए हैं। सेना ने यहां आतंकियों के मनोबल को बुरी तरह कुचला है।
यूं तो धरती पर आतंकवाद का दंश पूरी दुनिया झेल रही है। इस संदर्भ में भारत का उदाहरण भी लिया जा सकता है क्योंकि इसकी पीड़ा भारत से बेहतर और कौन समझ सकता है। भारत ने कई आतंकी हमले झेले हैं। हिन्दुस्तान हमेशा से ही आतंक के खिलाफ रहा है और ये भारत की पहल ही है जिसकी बदौलत आज आतंकवाद के खात्मे को लेकर पूरा विश्व एक मंच पर खड़ा है। कह सकते हैं कि आतंक के खिलाफ भारत की कोशिशें रंग लाई हैं। देश में सुरक्षा का माहौल बनाने की कोशिश हर स्तर पर जारी है। यही वजह है कि पिछले कुछ सालो में देश की खुफिया एजेंसियों ने अलग-अलग राज्यों से कई आतंकियों को दबोच कर ना सिर्फ उनके नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया है बल्कि दूसरे मुल्कों में बैठे उनके आकाओं को बेहद लाचार भी कर दिया है।
कभी जम्मू-कश्मीर समेत पूरी घाटी में आतंकी खुलेआम घूमा करते थे और अपने आतंक की नुमाइश खुल्लम-खुल्ला किया करते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में आतंकियों के खिलाफ भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन क्लीन’ ने उनकी कमर तोड़ दी है। 150 से ज्यादा आतंकियों को सेना ने गहरी नींद में सुला दिया है, खास बात यह है कि इनमे कई शीर्ष कमांडर आतंकी भी शामिल हैं। आतंकियों के मांद में भारत का ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ भी उन्हें दिन में तारे दिखाने जैसा रहा। भारत के इन कड़े प्रयासों ने आतंक पसंद मुल्कों और संगठनों को झकझोर कर रख दिया है, जबकि यह बेहद ही चौंकाने वाली बात है कि दहशतगर्द उन मुल्कों में भी खुलेआम दहशतगर्दी करते हैं जो इन्हें पनाह देते हैं।
अमेरिका, रूस, इजरायल, जापान जैसे देशों ने भी आतंक के खिलाफ हाल के दिनों में कड़ा रुख दिखाया है। इन राष्ट्रों ने कई बार भारत के साथ एक मंच पर आतंकवाद के खात्मे की प्रतिबद्धता को दोहराया है। हालांकि इन सब के बीच चीन का रवैया दिल में कुछ और जुबां पर कुछ वाला ही रहा है। एक तरफ तो चीन आतंकिस्तान के खिलाफ साझा मंच पर कार्रवाई की बातें करता है तो वहीं दूसरी तरफ चुपके-चुपके वो ना सिर्फ आतंकिस्तान के साथ नए-नए समझौते करता है, बल्कि कुख्यात आतंकियों के प्रति नरम रवैया भी रखता है।
बहरहाल हर तरफ से आतंकियों की टूटती कमर और मुट्ठी में सिमटती इनकी संख्या बल ने उन्हेें अंदर से डरा दिया है। आतंकियों को डर है कि जिस दहशत की आग को वो दुनिया भर में फैलाने चाहते हैं वही आग कहीं उन्हें ही ना लील ले। दुनिया भर के देश आतंकी संगठनों पर ना सिर्फ नए-नए बैन लगा रहे हैं बल्कि इन संगठनों के बैंक अकाउंट्स भी सील किये जा रहे हैं। चौतरफा घिरते आतंकी अब निहत्थे, और बेकसूर इंसानों को समय-समय पर निशाना बना रहे हैं। मिस्र में हुए हमले में भी आतंकियों की खिसियाहट ही है, वो ऐसा कर के भले ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हो लेकिन यह उनके खुद के अस्तित्व के खत्म होने के डर के प्रति की गई एक हिंसक प्रतिक्रिया के सिवा और कुछ नहीं है।
निशांत नंदन की कलम से…