देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भोजपुरी बोलने वाले लोगों से उसी भाषा में ही बात करते थे। राजेंद्र बाबू के बारे में महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि ‘मेरे साथ काम करने वालों में राजेंद्र बाबू सबसे अच्छों में एक हैं। वह जब कभी चाहें, मुझे सेवा के लिए बुला सकते हैं। हरिजन कार्य उनका उतना ही है, जितना मेरा और उसी तरह बिहार का काम मेरा उतना ही है जितना उनका।’ वो कहते थे कि ‘राजेंद्र बाबू का त्याग हमारे देश के लिए गौरव की वस्तु है। नेतृत्व के लिए इन्हीं के समान आचरण चाहिए। राजेंद्र बाबू का जैसा विनम्रतापूर्वक व्यवहार है, और स्वभाव है, वैसा कहीं भी किसी भी नेता का नहीं है।
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बात 26 जनवरी 1960 की है, जब डॉ राजेंद्र प्रसाद देश के राष्ट्रपति थे। वे हर साल गणतंत्र दिवस अपने देशवासियों के साथ मनाते थे। लेकिन इस बार गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले राजेंद्र बाबू के साथ अनहोनी हो गई। उनके बेहद करीब रहने वाली उनकी बड़ी बहन भगवती देवी का निधन हो गया। अपनी बड़ी बहन के मौत से वो सदमे में चले गए और रात भर उनके शव के पास बैठे रहे। सुबह-सुबह ही उनके घर वालों ने उन्हें अवगत कराया कि राष्ट्रपति होने के नाते आपको गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेने जाना होगा। इतना सुनते ही वे सबकुछ छोड़कर सीधे परेड की सलामी लेने चले गए। इस दौरान उनके चेहरे परे ना बहन की मृत्यु का शोक था और ना ही थकान। सलामी की रस्म पूरी करने के बाद वे घर लौटे और बहन की मृत देह के पास जाकर फफक कर रो दिए। फिर अंत्येष्टि के लिए अर्थी के साथ यमुना तट तक गए और रस्म पूरी की। ऐसे थे राजेंद्र बाबू।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने छात्र जीवन की हर परीक्षा में टॉप किया था। इतना ही नहीं, एक बार तो उनकी उत्तर पुस्तिका में परीक्षक ने यह भी लिख दिया था कि ‘परीक्षक से परीक्षार्थी बेहतर है’।