पेशवा व दलित के बीच 200 साल पहले हुए जातीय संघर्ष की लड़ाई की बरसी पर हुए समारोह में भड़की हिंसा का इतिहास पुराना है।
ये है इतिहास-
दरअसल 200 साल पहले महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में अछूत माने जाने वाले महार जाति के लोग ब्राह्मण पेशवाओं के अत्याचार से परेशान थे। इसी दौरान अंग्रेज भारत में अपनी पैठ ज़माने को उत्सुक थे। इसी का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने अछूत माने जाने वाले महार जाति की दुखती रग पर हाथ रखा और तमाम अधिकारों से वंचित महारों को अधिकार दिलाने को सेना में शामिल होने का न्योता दिया।
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अंग्रेजों ने 111 माहर्स बटालियन बनाई, जिसमें महार जाति के लोग शामिल थे। एक जनवरी 1818 को अंग्रेजों के महार सैनिकों ने बाजीराव पेशवा द्वितीय पर हमला बोल दिया। उस वक्त पेशवा के पास 28000 सैनिक थे और महारों की सेना में सिर्फ 500 सैनिक थे। इसके बाद भीमा नदी के पास भीषण युद्ध हुआ और बहादुर माहरों ने पेशवा की भारी भरकम सेना को धूल चटा दी और मराठा साम्राज्य को मिट्टी में मिला दिया। लड़ाई में कुछ महार सैनिक में शहीद हुए जिनकी याद में पुणे के परने गांव में ‘जय स्तंभ’ बनाया गया। साल 1937 में डॉ भीम राम आंबेडकर भी वहां गए थे, जिसके बाद से हर साल एक जनवरी को वहां दलित समाज के लोग शौर्य दिवस मनाते हैं।