भोजपुर मना रहा है वीर कुंवर सिंह का 160 वां विजयोत्सव। मुख्यमंत्री समेत शामिल होंगी कई बड़ी हस्तिया। जानते है उस योद्धा की कहानी जिसने 80 साल के उम्र में भी दुश्मनों को चारो खाने चित किया।
भोजपुर जिले के जगदीशपुर के एक बड़े ताकतवर व्यक्ति थे साहेबजादा सिंह। उनके चार पुत्र थे। कुंवर सिंह, दयालु सिंह, राजपति सिंह और अमर सिंह। उसमे जिसने वीरता की गाथा लिखी वो थे बाबू वीर कुंवर सिंह। 1857 का वीर योद्धा बाबू वीर कुंवर सिंह के अदम्य साहस था। आज भी लोग उनके साहस की चर्चा करते नहीं थकते हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पृष्ठों को उलटने पर 1857 के संग्राम में भोजपुर एवं बाबू वीर कुंवर सिंह का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वे बाल्यावस्था से ही काफी वीर थे। उनकी पढ़ाई में विशेष रूचि न थी। उन्होंने जितौरा के जंगल में अपना बंगला बनवाया। वे जंगल के अत्यंत प्रेमी थे, जिस कारण वृक्षारोपण कार्य को बढ़ावा दिया। कुंवर सिंह तत्कालीन जगदीशपुर के लोकप्रिय राजा व 1857 के सफल योद्धा थे। युद्ध कला में कुशल होने के कारण अंग्रेजों के चयनित प्रतिनिधियों को सात बार परास्त किया था।
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अंग्रेज अधिकारी को बनाया बंधक
26 जुलाई 1857 की शाम दानापुर छावनी से देशी सिपाही विद्रोह कर आरा पहुंचे। आरा के महाराजा कॉलेज स्थित ‘आरा हाउस’ में अंग्रेज अधिकारी, सिख पुलिस समेत अन्य अपनी जान व माल की सुरक्षा के एकत्रित हुए थे। आरा पहुंचे देशी सिपाहियों के साथ लगभग दस हजार जनता ने वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में ‘आरा हाउस’ को 27 जुलाई से 3 अगस्त तक घेरे रखा। लगातार अंग्रेजों की देशी सैनिकों एवं जनता के साथ लड़ाई जारी रही। आरा हाउस के अंदर छिपे लोगों का निकलना नामुमकिन था, जिसके कारण अंदर पानी के लिए कुंआ खोदना पड़ा। इस दौरान मुगलसराय जा रहे कर्नल आयर को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वह आरा आकर आरा हाउस से अंग्रेज अफसरों सहित अन्य को मुक्त कराया। इसके बाद कुंवर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों से कई लड़ाइयां लड़ी गई।
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विद्रोही सैनिकों ने स्वीकारा था अपना नेता
24 जुलाई 1857 को दानापुर के देशी पलटनों ने विद्रोह कर दिया और जगदीशपुर की ओर कूच किया। इस क्रांतिकारी सेना ने जगदीशपुर पहुंचकर कुंवर सिंह को अपना नेता स्वीकार कर लिया। उन्होंने इस सेना का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। सेना ने आरा पहुंचकर खजाने पर कब्जा कर लिया और कैदियों को रिहा कर दिया। इस बगावत को दबाने के लिए दानापुर से डनवर की सेना आरा के लिए बढ़ी। 29 जुलाई 1857 को आरा के आराम बाग के निकट आम बाग में सेना के साथ संघर्ष हुआ। इसमें डनवर मारा गया और फौज को बुरी तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा । 2 अगस्त 1857 को मेजर आयर से सेना की भिड़ंत आरा के बीबीगंज के निकट हुई।
डगलस का कुंवर सिंह पर हमला
कुंवर सिंह सिकंदरपुर घाघरा को पारकर गाजीपुर के मनोहर गांव पहुंचे, थोड़ी देर के लिए रात में आराम किया। डगलस ने प्रात: काल ही कुंवर सिंह की सेना पर अचानक हमला कर दिया। कुंवर सिंह अपनी सेना के साथ नाव द्वारा बलिया से शिवपुर घाट पार कर रहे थे। सबसे पीछे कुंवर सिंह की नाव थी। उसी समय अंग्रेज सैनिक वहां पहुंच गये और पार कर रहे कुंवर सिंह पर गोली चलानी शुरु कर दी। दुर्भाग्य से एक गोली कुंवर सिंह के दाहिने हाथ में लगी। शरीर में विष न फैले इस सोच के तहत कुंवर सिंह ने अपने बांये हाथ से दाहिने हाथ को काटकर गंगा के हवाले कर दिया।
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जगदीशपुर में फहराया पताका
कुंवर सिंह ने लीग्रेन्ड और उसकी सेना को हराकर 23 अप्रैल को जगदीशपुर में अपना पताका फहरा कर जगदीशपुर को स्वतंत्र घोषित किया था ।