उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर व फुलपुर के उप-चुनाव में मिली करारी हार से सबक लेते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दलितों को साधने के लिए एक नयी रणनीति बनाई है। समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने भारतीय जनता पार्टी को नये सिरे से सोचने पर मजबूत कर दिया था। जिसकी कांट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खोज निकाली है। जिस तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकारी नौकरियों में अति-पिछड़ो व महादलितों के लिए अलग-अलग आरक्षण की मांग की थी,उसी तर्ज पर योगी आदित्यनाथ 2019 की लोकसभा चुनाव से पहले अपने राज्य में आरक्षण व्यवस्था लागू कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मार्च में एक समिति का गठन किया है जो महादलितों व अतिपिछड़ो पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपेंगी। यह सब करने के पीछे मुख्य वजह बसपा व सपा के पारंपरिक वोट बैंक को अपने पाले में करना है।
योगी सरकार 2001 में राजनाथ सिंह द्वारा गठित सामाजिक न्याय समिति द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर आरक्षण शुरू कर सकती है।
शुक्रवार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमे ऊपरी जातियों में गरीबों के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण, पिछड़ी जातियों के हिस्से में 1 प्रतिशत की वृद्धि 27 प्रतिशत से 28 प्रतिशत, और निर्धारित जनजातियों के लिए कोटा से 1 प्रतिशत कटौती है ।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यूपी सरकार पिछड़े वर्ग वर्ग को ए (पिछड़ा), बी (सबसे पिछड़ा) और सी (अत्यंत पिछड़ा) उपश्रेणियों में विभाजित कर सकती है।
यह भी पढ़ें-उत्तर कोरियाई शासक किम जोंग ने दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति से की मुलाकात
सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के अनुसार, ऊपरी पिछड़े वर्गों में से केवल 2.3 प्रतिशत सभी आरक्षित सीटों को खा रहे थे।
ए श्रेणी में यादव और अहिर जैसे ऊपरी पिछड़े वर्ग होंगे, बी में मौर्य, कुशवाह और सैनीस और सी, मल्लाह, निशाद और लोहर होंगे।
अब आने वाले लोकसभा के चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस नयी आरक्षण व्यवस्था से भारतीय जनता पार्टी को कितना फायदा होता है।