राज्य में शराबबंदी के बाद बेरोजगार हुए कर्मचारियों के जीवन यापन के लिए सरकार की तरफ से किस तरह की योजनाएं बनाई जा रही हैं? कर्मचारियों के लिए क्या कोई राहत पैकेज बनाया गया है? ये बातें पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है| और चार हफ्तों में इसका जवाब मांगा है| ये बातें चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस सुधीर सिंह की खंडपीठ ने एक कंपनी के बेरोजगार हुए करीब दो सौ कर्मचारियों की लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कही| कोर्ट ने टिप्पणी की कि लोक कल्याणकारी सरकार होने के चलते ये अपेक्षा की जाती है कि सरकार इस मामले में चिंतित होगी| याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता वाई सी वर्मा ने कहा कि बिहार में शराब बंदी कानून लागू होने के कारण मोकामा स्थित शराब फैक्ट्री बंद हो गई है। जिसके चलते वहां के कर्मचारी भूखमरी के कगार पर आ गए हैं। कर्मचारियों को न तो किसी प्रकार का मुआवजा मिला और न ही पुर्नवास योजना का लाभ।
कर्मचारियों का कहना था कि इस कंपनी में प्रतिवर्ष 2.34 लाख लीटर शराब का उत्पादन होता था। इसमें आधी बिहार में बिक जाती थी। शराबबंदी के झारखंड में शराब की आपूर्ति होती थी। लेकिन 2016-17 के बाद शराब का धंधा पूरी तरह से चौपट होने के चलते सैकड़ों लोग प्रभावित हो गये।