नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी ने तीसरी बार सत्ता में आकर ये साबित कर दिया कि, दम हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है। केजरीवाल ने भी कुछ ऐसा ही किया। दिल्ली की कुल 70 में 62 सीटें जीतकर सत्ता की हैट्रिक लगाने में कामयाब रहे। दिल्ली की सल्तनत को फतह करने के बाद आम आदमी पार्टी की नजर राष्ट्रीय पटल पर अपनी छाप छोड़ने की है, जिसके लिए केजरीवाल हनुमान भक्त बने रहने के मूड में हैं और AAP नेताओं ने दिल्ली में सुंदरकांड का पाठ करवाना शुरू कर दिया है। केजरीवाल का यह दांव कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।
केजरीवाल ने खुद को हनुमान भक्त बताया
दिल्ली विधानसभा चुनाव में हनुमान की एंट्री किसी और नेता ने नहीं बल्कि अरविंद केजरीवाल ने कराई थी। एक इंटरव्यू में उनसे बस इतना पूछा गया था कि क्या हनुमान चालीसा आती है। ये सवाल सुनते ही केजरीवाल खुद को हनुमान भक्त बताते हुए हनुमान चालीसा गाने लगे। बजरंगबली के मंदिर जाने लगे और दिल्ली चुनाव की जीत के बाद भगवान हनुमान को शुक्रिया बोला। केजरीवाल शपथ ग्रहण वाले दिन भी माथे पर तिलक लगा कर रामलीला मैदान पहुंचे थे। इससे पहले केजरीवाल ने जब दो बार सीएम पद की शपथ ली थी, तब वो तिलक लगा कर मंच पर नहीं दिखे थे।
2013 और 2015 में मंदिर जाते नजर नहीं आए
अरविंद केजरीवाल पहली बार 2013 में जब मुख्यमंत्री बने तो उनके पार्टी दफ्तर से चंद कदम की दूरी पर था दिल्ली के कनॉट प्लेस वाला हनुमान मंदिर। अरविंद उस वक्त न तो जीत के बाद मंदिर गए थे न ही भाषण में हनुमान का जिक्र किया था। साल 2015 में दूसरी बार जब अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने ऐतिहासिक 70 में से 67 सीट जीती थी, तब आम आदमी पार्टी का दफ्तर दिल्ली के पटेल नगर में था। वहां से भी कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है, जहां वो नहीं गए थे। इस बार आम आदमी पार्टी का दफ्तर आईटीओ के पास है, जहां से हनुमान मंदिर की दूरी भी ठीक ठाक है। लेकिन इस बार चुनाव प्रचार थमने के बाद हनुमान मंदिर गए और जीत के बाद भी जाकर माथा टेका।
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केजरीवाल सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर
अरविंद केजरीवाल अपने काम की राजनीति के फॉर्मूले को को देश भर में ले जाना चाहते हैं तो फिर बजरंगबली की भक्ति और उससे मिलने वाली शक्ति का प्रदर्शन क्यों? कहावत है, ‘दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। यही वजह है कि बीजेपी और नरेंद्र मोदी के सामने एक मजूबत विकल्प के तौर पर अपने आपको पेश करने के लिए केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता अब सॉफ्ट हिंदुत्व से हटना नहीं चाहते हैं।
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बता दें कि नरेंद्र मोदी की 2014 में केंद्र की राजनीतिक एंट्री के बाद देश का राजनीतिक पैटर्न बदल गया है। बीजेपी के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबले के लिए दूसरी पार्टियां भी सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए अपने सियासी वजूद को बनाए रखना चाहती है। इस फेहरिश्त में केजरीवाल ही नहीं बल्कि कांग्रेस के राहुल गांधी से लेकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तक शामिल रहे हैं।