बिहार में शराबबंदी के दो वर्ष पूरे हो चुके है। अब राज्य मंत्रिमंडल ने सतत जीविकोपार्जन नाम की नई योजना को मंजूरी दी है। जिसमे देशी शराब और ताड़ी उत्पादन एवं बिक्री में पारंपरिक रूप से जुड़े अत्यंत निर्धन परिवारों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अन्य समुदाय को समाज की मुख्य धारा से जोडऩे के लिए सरकार अगले तीन वर्ष में इस योजना पर 840 करोड़ रुपये खर्च करेगी। योजना के तहत शराब और ताड़ी के उत्पादन एवं बिक्री में पारंपरिक रूप से जुड़े अत्यंत निर्धन परिवारों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति एवं अन्य समुदाय के परिवारों की पहचान कर उन्हें आर्थिक रूप से मदद दी जाएगी। मदद कर्ज अथवा सब्सिडी के रूप में होगी।
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लाखों परिवार होंगे लाभान्वित
राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के बाद ग्रामीण विकास विभाग के सचिव अरविंद कुमार ने बताया कि इस योजना के तहत वैकल्पिक रोजगार सृजन का काम होगा। सरकार का मकसद हाशिये पर खड़े लोगों का क्रमिक विकास करते हुए उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩा है। अनुमान है कि एक लाख परिवार इस योजना में आएंगे। इन लोगों का विकास सुनिश्चित करने के लिए माइक्रो प्लानिंग होगी। सूक्ष्म योजना बनाकर परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी।
जीविका ग्राम संगठन करेगा परिवारों की पहचान
ऐसे परिवारों की पहचान जीविका के ग्राम संगठन के सहयोग से किया जाएगा। ग्राम संगठन की रिपोर्ट के आधार पर परिवारों को रोजगार सृजन के लिए आर्थिक सहायता दी जाएगी। अरविंद कुमार ने बताया कि एक परिवार को रोजगार के करीब साठ हजार रुपये दिए जा सकेंगे।
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25 फीसद राशि पशु पालन व 75 फीसद ग्रामीण विकास की
ग्रामीण विकास विभाग के मुताबिक योजना के लिए 25 फीसद राशि बकरी, भेड़, मुर्गी पालन जैसी योजनाओं से आएगी जबकि शेष 75 फीसद राशि की व्यवस्था ग्रामीण विकास विभाग अपने पास से करेगा। उन्होंने कहा योजना के तहत शराब और ताड़ी के उत्पादन एवं बिक्री में पारंपरिक रूप से जुड़े अत्यंत निर्धन परिवारों के साथ ही अन्य गरीब तबके के लोगों के लिए वैकल्पिक रोजगार सृजन की कवायद की जाएगी।