नई दिल्ली। धारा 370, एनआरसी के बाद अब मोदी सरकार एक और बड़ा दांव खेलने जा रही है। गृह मंत्री अमित शाह आज लोकसभा में नागरिकता संशोधन कानून को पेश करेंगे। इस बिल के तहत देश में आए शरणार्थियों को मिलने वाली नागरिकता को लेकर नियमों में पूरी तरीके से बदलाव किए जाएंगे। वहीं केंद्र सरकार के इस फैसले का विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही हैं और इसे भारत के मूल नियमों के खिलाफ बता रही हैं। इस बिल में क्या विवादित है, पहले क्या था और अब क्या होने जा रहा है।
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जानें बिल से जुड़ी 10 बातें…
1. मोदी सरकार जो नया बिल ला रही है, उसे सिटिजन अमेंडमेंट बिल, 2019 नाम दिया गया है। इस बिल के आने से सिटिजन एक्ट, 1955 में बदलाव होगा।
2. मोदी सरकार के बिल के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश, पाकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात कही गई है।
3. इसके साथ ही इन सभी शरणार्थियों को भारत में अवैध नागरिक के रूप में नहीं माना जाएगा. अभी के कानून के तहत भारत में अवैध तरीके से आए लोगों को उनके देश वापस भेजने या फिर हिरासत में लेने की बात है।
4. इन सभी शरणार्थियों को भारत में अब नागरिकता पाने के लिए कम से कम 6 साल का वक्त बिताना होगा. पहले ये समयसीमा 11 साल के लिए थी।
5. अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम के इनर लाइन परमिट एरिया को इस बिल से बाहर रखा गया है। इसके अलावा ये बिल नॉर्थ ईस्ट के छठे शेड्यूल का भी बचाव करता है।
6. नए कानून के मुताबिक, अफगानिस्तान-बांग्लादेश-पाकिस्तान से आया हुआ कोई भी हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई नागरिक जो कि 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में आया हो उसे अवैध नागरिक नहीं माना जाएगा।
7. इनमें से जो भी नागरिक OCI होल्डर है, अगर उसने किसी कानून का उल्लंघन किया है तो उसको एक बार उसकी बात रखने का मौका दिया जाएगा।
8. इस बिल का विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही हैं और भारत के संविधान का उल्लंघन बता रही हैं। विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार जो बिल ला रही है, वह देश में धर्म के आधार पर बंटवारा करेगा जो समानता के अधिकार के खिलाफ है।
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9. पूर्वोत्तर में इस बिल का सबसे अधिक विरोध हो रहा है, पूर्वोत्तर के लोगों का मानना है कि बांग्लादेश से अधिकतर हिंदू आकर असम, अरुणाचल, मणिपुर जैसे राज्यों में बसते हैं ऐसे में ये पूर्वोत्तर राज्यों के लिए ठीक नहीं रहेगा। पूर्वोत्तर में कई छात्र संगठन, राजनीतिक दल इसके विरोध में हैं।
10. एनडीए में भारतीय जनता पार्टी की साथी असम गण परिषद ने भी इस बिल का विरोध किया है, बिल के लोकसभा में आने पर वह गठबंधन से अलग हो गई थी। हालांकि, कार्यकाल खत्म होने पर जब बिल खत्म हुआ तो वह वापस भी आई।