लॉकडाउन से वैक्सीन तक, कोरोना संकट से कितनी बदली दुनिया की तस्वीर?

by Mahima Bhatnagar
Lockdown

कहते हैं ना कि हर चीज की अति बुरी होती है। मानव विकास के पहिए पर सवार होकर नित्य प्रगति कर रहा है। लेकिन पिछले सौ साल में मनुष्य ने विकास की जो नई इबारत लिखी, मानो वह इस धरती के रचयिता को ही चुनौती देने वाली थी। इंटरनेट और डिजिटल क्रांति ने पूरी दुनिया को बदल दिया।

विकास की अंधी दौड़ में हम भूल गए कि हमें क्या करना है, क्या नहीं। ऐसे में कोरोना संकट ने विकास की रफ्तार पर फिलहाल लगाम लगाया है। विधाता ने एक पॉज दिया है, हमें रुककर सोचने के लिए कि हमें विकास की धारा को किस दिशा में मोड़ना है। ये वक्त है सोचने का। ऐसा नहीं है कि कोरोना संकट से सिर्फ नुकसान हुआ है। आइए समझें कोरोना संकट से अबतक कितनी बदली दुनिया।

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राहुल गांधी ने हाल ही में बांग्लादेश के प्रख्यात अर्थशास्त्री और बांग्लादेश ग्रामीण बैंक के संस्थापक मुहम्मद यूनुस से बात की। एक सवाल के जवाब में अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस ने कहा कि कोरोना संकट ने आर्थिक मशीन को रोक दिया है, अब लोग सोच रहे हैं कि पहले जैसी स्थिति जल्द हो जाए। लेकिन ऐसी जल्दी क्या है, अगर ऐसा होता है तो बहुत बुरा होगा। हमें उसी दुनिया में वापस क्यों जाना है, जहां ग्लोबल वॉर्मिंग का मसला है और बाकी सभी तरह की दिक्कतें हैं। ये हानिकारक होगा, कोरोना ने आपको कुछ नया करने का मौका दिया है. आपको कुछ अलग करना होगा, ताकि समाज पूरी तरह से बदल सके।

कोरोना संकट ने वाकई दुनिया को बदलकर रख दिया है। अभी पूरी दुनिया कोरोना वायरस पर लगाम लगाने के लिए वैज्ञानिकों की ओर टकटकी लगाकर देख रही है। वैक्सीन पर दुनियाभर में काम चल रहा है। करीब 20 जगह कोरोना वैक्सीन पर शुरुआती सफलता दिख रही है। कबतक वैक्सीन मार्केट में आएगी, इस पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन बोल चुका है कि शायद कोरोना पर स्थायी रूप से लगाम नहीं भी लग सकती है। परन्तु, हम पूरी तरह आशावादी हैं वैक्सीन जरूर बनेगी। लेकिन लॉकडाउन से वैक्सीन की राह तक, अबतक जो कुछ हुआ उससे सबक लेने का वक्त है।

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कोरोना और लॉकडाउन की जिंदगी

अबतक जो जानकारी है उसके मुताबिक कोरोना वुहान के सी-फूड मार्केट से दिसंबर 2019 में शुरू हुआ। फिर कोरोना वायरस ने पूरे वुहान शहर को अपनी चपेट में ले लिया। शुरुआती कुछ महीनों तक यह कोरोना का एपिसेंटर बना रहा। लेकिन धीरे-धीरे पूरी दुनिया में कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ।चीन के बाद इटली, फ्रांस और अमेरिका पर कोरोना का कहर बरपा। तब लग रहा था कि शायद भारत में कोरोना का संक्रमण उस रफ्तार से नहीं होगा.

कोरोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. पूरी दुनिया में इस समय करीब पौने दो करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना की चपेट में हैं, जबकि अबतक 6 लाख 80 हजार से ज्यादा लोगों की जान इस वायरस ने ले ली है। जबकि भारत में अबतक कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 17 लाख को पार चुकी है और कोरोना की चपेट में आने से अब तक 37,360 से ज्यादा मरीज दम तोड़ चुके हैं। ऐसे में हम थोड़ा पहले लौटते हैं।

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कोरोना संकट से क्या नफा क्या नुकसान

जब दुनिया में कोरोना तेजी से पैर पसार रहा था तो ज्यादातर देशों में लॉकडाउन लगाना पड़ा। अब हमारी जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी। ज्यादातर देशों में कर्फ्यू सा माहौल था। दुकान, बाजार, दफ्तर, सिनेमा हॉल, मॉल्स, बस, रेल और फ्लाइट सब बंद। लोगों की नौकरियां जाने लगीं। आर्थिक गतिविधियां रुक गईं।

भारत में पलायन का भयावह रूप

अचानक लॉकडाउन के कारण भारत में प्रवासी मजदूरों का संकट गहरा गया। इतिहास में ऐसा संकट पहली बार देखा गया। गरीब मजदूर रोजी रोटी कमाने के लिए अपने घरों से हजारों किलोमीटर दूर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, बेंगलुरु, पुणे समेत अन्य शहरों में थे। अचानक कंपनियां, फैक्ट्रियां सभी जगह शटडाउन हो गया। उनके पास ना रोजगार था और ना बैंक बैलेंस। खाने के लाले पड़ गए. ना बसें चल रही थीं और ना ट्रेनें।

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राष्ट्रीय राजमार्ग पर दिल दहलाने वाला नजारा था। मजदूरों का हुजूम पैदल निकल पड़ा। 500-1000 या फिर 1500 किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचने के लिए. कइयों की भूख-प्यास से मौत हो गई तो कइयों की सड़क हादसे में। हालांकि इस दौरान सरकार और एनजीओ ने अपनी-अपनी ओर से पूरी मदद करने की कोशिश की लेकिन ये ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुआ। फिर ट्रेन चलाने का फैसला हुआ। तबतक लॉकडाउन ने कई जिंदगियां लील ली थीं। बस हो रही थी तो सिर्फ राजनीति।