नई दिल्ली। एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन से ब्लड क्लॉटिंग (खून के थक्के जमने) का खतरा बताया जा रहा है। इसी डर के चलते, यूरोपियन यूनियन के तीन सबसे बड़े देशों- जर्मनी, फ्रांस और इटली ने सोमवार को एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन का रोलआउट रोक दिया था। इसके बाद स्पेन, पुर्तगाल, लतविया, बुल्गारिया, नीदरलैंड्स, स्लोवेनिया, लग्जमबर्ग, नॉर्वे, आयरलैंड ने भी इसका टीकाकरण रोक दिया। इंडोनेशिया ने भी वैक्सीन का रोलआउट टालने का फैसला किया है।
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भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) इस वैक्सीन को बना रहा है जिसे ‘कोविशील्ड’ नाम दिया गया है। ब्लड क्लॉटिंग के डर के चलते क्या भारत में भी कोविशील्ड टीके पर फिलहाल रोक लगेगी?
केंद्र सरकार ने कहा, अभी ऐसा कोई इरादा नहीं
स्वास्थ्य मंत्रालय में सूत्रों के हवाले से एनडीटीवी ने दावा किया है कि अभी कोविशील्ड पर रोक लगाने का कोई विचार नहीं है। सूत्रों ने कहा कि भारत में जिन्हें यह वैक्सीन दी गई है, उनमें ब्लड क्लॉटिंग की शिकायत सामने नहीं आई है।
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मंत्रालय इस बारे में कोई फैसला लेने से पहले वैज्ञानिक सबूतों को परखना चाहता है। टीकों को लेकर बनी एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्युनाइजेशन (AEFI) कमिटी एक-दो दिन में बैठक करेगी।
ब्लड क्लॉटिंग का टीके से लेना-देना नहीं: एस्ट्राजेनेका
दुनियाभर में वैक्सीन से ब्लड क्लॉटिंग की बढ़ती चिंताओं के बीच, एस्ट्राजेनेका ने सोमवार को कहा कि कम से कम 1.7 करोड़ लोगों को यह टीका लगाया जा चुका है। कंपनी ने कहा कि रिव्यू से यही सामने आया कि वैक्सीन इस्तेमाल के लिए सुरक्षित है। कंपनी ने कहा कि ब्लड क्लॉटिंग की घटनाएं उसकी वैक्सीन AZD1222 से संबंधित नहीं हैं।
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भारत के लिए इतनी टेंशन क्यों नहीं?
अभी तक जिन देशों ने एस्ट्राजेनेका के टीकों पर रोक लगाई है, उनमें से एक को भी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने वैक्सीन सप्लाई नहीं की है। जबकि भारत में जितने भी लोगों को यह वैक्सीन लग रही है, वह SII ने तैयार की हैं।
वैक्सीन का फॉर्म्युला तो एक ही है, मगर उन्हें तैयार करने की प्रक्रिया के दौरान हो सकता है कि विदेश में कोई मामूली चूक हुई हो। हालांकि एस्ट्राजेनेका ने इससे साफ इनकार किया है। दूसरी बात भारत में अभी तक ऐसा कोई केस सामने आया नहीं है।
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वैक्सीन को लेकर ब्लड क्लॉटिंग का डर क्या है?
कई देशों ने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगाए जाने के बाद लोगों में ब्लड क्लॉट्स डिवेलप करने की शिकायत की। डेनमार्क में एक व्यक्ति की मौत भी हो गई। एस्ट्राजेनेका ने कहा कि 8 मार्च तक उसके पास आए डेटा के अनुसार, यूरोपियन यूनियन और यूके में डीप वीन थ्रॉम्बोसिस (deep vein thrombosis) की 15 घटनाएं और पल्मोनरी एम्बॉलिज्म (pulmonary embolism) की 22 घटनाएं रिपोर्ट हुई थीं। कंपनी ने कहा कि जितनी आबादी को वैक्सीन लगी, उसके हिसाब से ये घटनाएं उम्मीद से भी कम रहीं।
क्या है डीप वीन थ्रॉम्बोसिस?
यह बेहद गंभीर बीमारी है जिसमें शरीर के भीतर नसों में खून के थक्के बनने लगते हैं। आमतौर पर यह जांघ या पैरों की नसों में होता है मगर शरीर के बाकी हिस्सों में भी हो सकता है।
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ोफेफड़ों की धमनियों में ब्लॉकेज को पल्मोनरी एम्बॉलिज्म कहते हैं। अधिकतर केसेज में डीप वीन थ्रॉम्बोसिस के बाद होने वाली बीमारी है। यह तब होती है जब नसों में जमे खून के थक्के फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं।
क्या है पल्मोनरी एम्बॉलिज्म?
भारत में दी जा चुकी दो टीकों की 3.29 करोड़ डोज देशभर में अबतक कुल 3,29,47,432 वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी है। टीकाकरण अभियान के 59वें दिन यानी 15 मार्च को कुल 30,39,394 डोज लगाई गईं। भारत ने कोविशील्ड के अलावा भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ को भी मंजूरी दी है। फिलहाल इन्हीं दोनों वैक्सीन के सहारे टीकाकरण हो रहा है।