कभी अपने अनोखे स्वाद से सबको ललचाने वाला दीघा का ‘दूधिया मालदह’ अब लोगों से दूर होता जा रहा है। जून का महीना आते ही आज से पांच साल पहले जिस लजीज आम की खुशबू बाजार में फैल जाती थी आज वो खुशबू धीरे-धीरे गायब हो रही है। कभी पटना के दीघा और राजीव नगर के इलाके में इसके बागों का साम्राज्य था। बीघा का बीघा खेत केवल इस आम के ही बगानों से भरा पड़ा था। ज्यादा बगान रहने के चलते उत्पादन भी जबर्दस्त होता था,बाजार में कम कीमत के चलते खरीदारों को भी राहत मिलती थी। लेकिन समय सबको लील गया आज बगानों की जगह बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों ने ले ली है, और ‘दूधिया मालदह’ के पेड़ कई इलाकों से गायब हो गए। बाजारवादी संस्कृति के चलते आम के बगानों की जगह अपार्टमेंट खड़े हो गए और इस अनोखे और स्वादिष्ट आम की पहचान आज मिटने के कगार पर है।
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दीघा इलाके के रहने वाले और कभी बड़े बगान के मालिक कहते हैं कि, बचपन में अप्रैल का महीना आते ही पूरा इलाका मालदह आम की मीठी खुशबू से महकता था। अब समय के साथ आम के कुछ बगीचे ही अतीत की निशानियों को बचाए हुए हैं।
लखनऊ के नवाब ने लगाए थे पेड़!
इतिहास के पन्नों को पलटें तो इस आम का इतिहास पाकिस्तान के इस्लामाबाद से जुड़ता है। कहा जाता है कि इस्लामाबा के फैसल मस्जिद इलाके से लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन इस आम के कुछ पेड़ लाए थे। पटना में रहने के दौरान नवाब ने दीघा के रेलवे क्रॉसिंग और इसके आस-पास की जमीनों पर आम के पेड़ लगाए जिन्होंने आगे चलकर बगीचे की शक्ल ले ली। कहा ये भी जाता है कि, पेड़ों में गाय के दूध से सिंचाई कराई गई जिसके चलते इसे ‘दूधिया मालदह’ का नाम दिया गया।
सब हैं इसके दीवाने
‘दूधिया मालदह’ के दीवाने गरीब से अमीर सब लोग हैं| दूधिया मालदह की खास बात ये रही की इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया,जाॉर्ज पंचम,पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहर लाल नेहरु सहित कई शख्सियतों ने इसके स्वाद को चखा था|
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साल 1952 में मशहूर फिल्म अभिनेता राजकपूर और गायिका सुरैया भी दीघा के बगीचे में आए थे और टोकरी भर कर दूधिया मालदह मुंबई लेकर गए थे|
आधुनिकता के चलते बर्बाद परंपरा
बढ़ती आबादी के बोझ ने दीघा इलाके के आम के बगीचे को बर्बाद कर दिया। अपार्टमेंट के चक्कर में बीघा का बीघा आम का बगीचा कंक्रीट के महलों में तब्दील हो गए। दीघा और आशियाना रोड पर कुछ बगीचे बचे हैं जो पुरानी परंपरा को सहेजने का काम कर रहे हैं।
‘दूधिया मालदह’ ने कई पुरस्कार पाए
इसी इलाके के बचे हुए कुछ आम के बगीचे के मालिक बताते हैं कि दूधिया मालदह को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले कई प्रदर्शिनियों में पहला स्थान मिला। साल 1997 में सिंगापुर में हुई आम प्रदर्शनी में पटना के दीघा आम की खुशबू ने पहला स्थान प्राप्त किया था।
जून का महीना खास
मई और जून में आम तैयार हो जाता है। बगीचे में दूर-दूर से लोग आम की खरीदारी करने आते हैं आमों की बिक्री यहां पर ऑर्डर के हिसाब से होती है। मई और जून का समय आम की बिक्री का बेहतरीन समय होता है।
दीघा के ‘दुधिया मालदह’ आम की खासियत है यहां की मिट्टी। इस इलाके की मिट्टी काफी उर्वरक है,जिसके कारण आम की मिठास और खुशबू लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। लेकिन जिस तरीके से ईंट और सीमेंट की दीवारें यहां दिन-रात खड़ी हो रही हैं उससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि शायद कुछ दिनों में ये आम भी इतिहास की विरासत न बन जाए!