और इस तरह ‘तीर’ निशाने से चूक गया…। चुनाव आयोग ने अब ‘तीर’ नीतीश कुमार को थमा दी है। ‘तीर’ मिलते ही नीतीश कुमार गदगद हैं और अब निशाने पर आ गए हैं शरद यादव। सवाल यह है कि अब क्या करेंगे शरद यादव। शरद पहले ही अध्यक्ष पद गंवा चुके थे और की जेडीयू की सदस्यता भी जा चुकी है, रही सही कसर चुनाव आयोग ने उन्हें ‘तीर’ ना देकर पूरी कर दी है। तो अब शरद यादव का अगला कदम क्या होगा इसपर सभी की नजरें टिकी होंगी। सबसे पहले आप यह जान लीजिए की कैसे शरद यादव का ‘तीर’ निशाने से चूक गया। दरअसल बिहार में महागठबंधन टूटने के बाद शरद यादव खुलकर नीतीश कुमार के खिलाफ खड़े हो गए थे, शुरू में तो शरद को मनाने की कोशिशें की गईं, लेकिन लालू की महारैली में शामिल होकर शरद ने अपना इरादा जता दिया। इसके बाद नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच तल्खियां और बढ़ गईं। बात यहां तक पहुंच गई कि दोनों पक्ष जेडीयू के चुनाव चिन्ह तीर पर अपना – अपना दावा पेश करते हुए चुनाव आयोग तक पहुंच गए।
चुनाव आयोग ने शुक्रवार को राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पक्ष में फैसला सुनाया। चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद छोटू भाई वसावा द्वारा अपने धड़े को असली जदयू बताने वाली याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले से शरद यादव के गुट को झटका लगा है और यह भी साफ हो गया है कि असली जदयू का नेतृत्व नीतीश कुमार के हाथ में है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नीतीश धड़े को पार्टी के विधायी और राष्ट्रीय परिषद के अधिकतर सदस्यों का समर्थन है। ऐसे में पार्टी पर उनका दावा बनता है।
नीतीश कुमार के पक्ष में जदयू के 71 विधायक, आठ राज्यसभा के सदस्य, दो लोकसभा के सदस्य और 30 विधान पार्षद हैं।राष्ट्रीय परिषद के 195 में से 138 सदस्यों का समर्थन भी उन्हें हासिल है। दूसरी तरफ विरोधी पक्ष को दो राज्यसभा सदस्य, एक विधायक और एक विधान पार्षद का ही समर्थन हासिल है। साफ है कि अब ‘तीर’ नीतीश की कमान में है और शरद यादव के लिए आयोग का फैसला किसी तगड़े झटके से कम नहीं। इधर आयोग के इस फैसले पर नीतीश कुमार खेमे के नेताओं ने प्रशंसा भी जाहिर की है।