बहुमत का छल

by TrendingNews Desk
नदी

नदी धनौती मछरी रेवा, खा ल ई बैकुंठ के मेवा। देशभटक पांड़े के मन में ठीक वैसी ही उथल-पुथल मची है जैसी उथल-पुथल लंगड़ मल्लाह के कठरा में रेवा मछली करती है। धनौती से निकली रेवा जब लंगड़ के छोटे से कठरा में आती है तो छटपटाने लगती है। अंदर ही अंदर छटपटा रहे हैं देशभटक पांड़े। जब से कर्नाटक चुनाव का रिजल्ट आया है इनका माइंड सुन्न हो गया है। कौन करम बाकी रह गया था चुनाव में। हद से ज्यादा नीचे गिरे, झूठ-फरेब सब किया। बाकी रिजल्ट हो गया ले लोट्टा। बहुमत और जनमत का हिसाब लगाते-लगाते देशभटक पांड़े का कपार दुखने लगा है। घर से निकल कर बरवा घाट पहुंचे। देशभटक पांड़े को धनौती की दुर्दशा भी नहीं देखी जा रही। सूखी नदी में धूल उड़ रही है। कहां कभी सालों भर कल-कल करती नदी बहती रहती थी। और कहां आज इसमें धूल उड़ रही है। अब तो मुश्किल से तीन महीने ही पानी रहता है नदी में। बरसात के दिनों में पानी भरता है और बरसात खत्म होने के साथ नदी सूख जाती है। कभी बैकुंठ का मेवा मिलता था इस नदी में और अब तो पोठिया-टेंगरा भी नसीब नहीं। जो कभी मछली बेचा करते थे वो अब मजदूर हो गए और कुछ ताड़ी बेचने लगे।

      देशभटक पांड़े का मन एक बार फिर कर्नाटक पहुंच गया। सबेरे जब शाखा में गए थे तब भी मन वहीं रमा था। समझ में ये बात नहीं आ रही है कि बहुमत का मतलब क्या है। अब कर्नाटक का ही हिसाब लगाइए। भाजपा को मिले हैं 36 फीसदी वोट जबकि कांग्रेस को 38 फीसदी। कायदे से तो बहुमत कांग्रेस के साथ है। तो जनमत कांग्रेस के साथ और जीत भाजपा की। तो मतलब ये कि जनतंत्र का ये ढांचा अब तक लोगों को भ्रमित करता रहा है। ये बहुमत नहीं बहुसीट का ढांचा है। जिसके पास सीट ज्यादा जीत उसी की।

   देशभटक पांड़े को इस बात का संतोष है कि जीत भाजपा की हुई है। लेकिन बहुमत और जनमत वाला गणित उनको परेशान कर रहा है। उनको भुटिया पंडित जी वाली ललकार भी याद आ रही है। तिवारी टोला में एक बार भुटिया पंडित जी ने ताल ठोक कर कहा था कि देश में सिर्फ और सिर्फ अल्पमत की सरकारें बनती रहीं हैं और जनता को धोखा देने के लिए उसे ही बहुमत बताया जाता रहा है। बीसीयों के सामने भुटिया पंडित जी तब ये बात साबित कर दिखाई थी और तब देशभटक पांड़े को चुप रह जाना पड़ा था। शाखा की तमाम ट्रेनिंग धरी की धरी रह गई थी। भ्रम, अफवाह और झूठ पर टिके रहने वाले सारे दांव उस दिन फेल हो गए थे। भुटिया पंडित जी ने जब कहा कि अच्छा बताओ पांड़े पांच लोगों ने अगर चुनाव लड़ा और सौ लोगों ने वोट किया तो फिर बहुमत का अंक कितना होगा। देशभटक पांड़े ने तपाक से कहा था कम से कम इक्यावन। एक पल को लगा कि देशभटक पांड़े ने भुटिया पंडित जी को हरा दिया लेकिन, अगले ही पल पासा पलट गया। भुटिया पंडित जी ने कहा कि पांड़े बाबा इसे अक्ल से समझो। मान लो पांच लोगों ने चुनाव लड़ा और चुनाव में सौ लोगों ने वोट डाला। जीतने वाले को मिले 24 वोट, दूसरे नंबर पर रहे 23 वोट पाने वाले और इसी तरह बाकी तीन को मिले 20, 18 और 15 वोट। अब 23, 20,18 और 15 को जोड़ोगे तो होते हैं 76 वोट। मतलब 76 लोग तो उस आदमी के खिलाफ थे। अब सोचो जिसके पक्ष में मात्र 24 लोग हों और खिलाफ 76 लोग वो भला बहुमत वाला कैसे हो सकता है।

    देशभटक पांड़े को अपने संघी तर्क पर बड़ा भरोसा रहता था। लेकिन, उस दिन उन (कु)तर्कशक्ति ने जवाब दे दिया था। आज एक बार फिर वही स्थिति है।

  दूर कहीं सूरज धनौती की गोद में समाता जा रहा है। धनौती सूख गई है। रेवा के सपने चकनाचूर हो चुके हैं। लंगड़ मल्लाह अब बेहद कमजोर हो गया है। बरवा घाट पर अब कोई नहीं आता। शाम होते ही यहां मरघट छा जाता है। देशभटक पांड़े सोच रहे हैं क्या यही भारत का लोकतंत्र है।

वरिष्ठ पत्रकार असित नाथ तिवारी के ब्लॉग से…