नई दिल्ली। आज है गुरू पुर्णिमा। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिया को इसे मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन महाभारत के रचयिता और चार वेदों के व्याख्याता महर्षि वेद का जन्म हुआ था। इसलिए इसे व्यास पुर्णिमा भी कहते हैं। इस बार यह 27 जुलाई को पड़ी है।
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जब भी गुरू शब्द आता है तो एक श्लोक हमेशा दिल और दिमाग में आता है। वो है ‘गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥’ इसका अर्थ है ‘गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम’। यह हमेशआ हमे एक सीख सिखाता है कि, अपने गुरूओं का हमेशा आदर करें, वो हमारे लिए भगवान समान होते हैं।
गुरू पुर्णिमा का क्या है महत्व
गुरू की महिमा हमारे ऊपर हमेशा बनी रहती है। वो हमे हमेशा सही राह पर चलने की सीख देते हैं। गुरू के बिना आप ज्ञान की प्राप्ती नहीं कर सकते। पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले विद्यार्थी गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से अपने गुरु की पूजा-अर्चना करते थे। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में आती है। इस मौसम को काफी अच्छा माना जाता है। इस दौरान न ज्यादा सर्दी होती है और न ही ज्यादा गर्मी। इस मौसम को अध्ययन के लिए उपयुक्त माना गया है। यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा से लेकर अगले चार महीनों तक साधु-संत विचार-विमर्श करते हुए ज्ञान की बातें करते हैं।
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