नई दिल्ली। मुंबई… आखिर 26/11 की रात को क्यो थम गई थी… पूरी रात दौड़ने वाला शहर क्यों रूक गया था। रात को सड़कों पर सामान बेचने वालों की आवाज, लोगों के हसंने की आवाजे क्यों सुनाई नहीं दे रही थी। वो शांत माहौल आखिर उस दिन क्यों डरा रहा था। आखिर वो आवाज क्या थी। जिसने लोगों को खौफ में जीने पर मजबूर कर दिया था। सवाल कई हैं जवाब एक… वो थी गोलियों की आवाज। वो रात मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक कभी ना भूलने वाला सच बन गया था। 60 घंटें उस होटल में मौजूद लोगों को हर पल मौत के पास आने का अहसास करा रहे थे। घड़ी की सुईयां घूम रही थी। समय निकल रहा था, और लोग मर रहे थे। दर्द भरी चीख अफरातफरी दिलों- दिमाग में खौफ पैदा कर रहा था। हादसा भले ही 11 साल पहले हुआ हो। लेकिन उसके जख्म आज भी लोगों के जहन में जिंदा हैं।
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11 years ago on this day, 26/11..
Never forget how so many innocent people lost their lives to mindless terror..
Never forget the brave jawans who sacrificed their lives for us..
Never forget those opportunist leaders who gave a clean chit to Pakistan..#MumbaiTerrorAttack pic.twitter.com/NTrtJoyhMP
— Priti Gandhi (@MrsGandhi) November 26, 2019
आज मुंबई हमले को 11 साल पूरे हो गए हैं। आज पूरा देश मुंबई हमले की बरसी पर उन शहीदों को याद कर रहा है। जिन्होंने आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी थी।
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हेमंत करकरे- देश की बागडोर असल मायने में अफसरों के हाथ में होती है, ऐसे ही अफसर थे, एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे जो मुंबई में हुए धमाके और गोलीबारी का बहादुरी से सामना करते हुए शहीद गए।
बता दें कि, हेमंत मुंबई के आतंक विरोधी दस्ते के प्रमुख थे ऑस्ट्रिया में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के अधिकारी के रूप में सात साल तक तैनात थे। घटना की जानकारी मिलते ही वो तुरंत हमले वाली जगह पर पहुंच गए। जब वो शिवाजी ट्रर्मिनल के पास बने कॉर्पोरेशन बैंक के एटीएम के पास पहुंचे तो गोलीबारी शुरू होने लगी, इसी दौरान पुलिस की एक गोली एक आतंकी के कंधे पर लगी, वह आतंकी अजमल कसाब था, जिसे करकरे ने धर दबोचा। इसी दौरान आतंकियों की ओर से जवाबी फायरिंग में तीन गोली हेमंत करकरे को भी लगी, जिसके बाद वह शहीद हो गए।
संदीप उन्नीकृष्णन- भारतीय सेना में मेजर थे। वे नवम्बर 2008 में मुंबई के हमलों में आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए। आपको बता दें कि, मुंबई हमलों में बंधकों को बचाने के लिए एसएजी की जिस टीम को भेजा गया था, उसकी कमान मेजर संदीप के हाथों में थी। संदीप अपने 10 कमांडों के साथ होटल की बिल्डिंग में घुसे और आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देना शुरू कर दिया। जब वो आतंकवादियों को अपना निशाना बना रहे थे उसी समय उनके एक साथी सुनील यादव को गोली आ लगी। जिसके बाद वो संदीप को बचाने के दौरान उनको भी कुछ गोलियां आकर लगी और वो गंभीर रूप से घायल हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए। बता दें, उनकी बहादुरी के लिए उन्हें 26 जनवरी 2009 को भारत के सर्वोच्च शांति समय बहादुरी पुरस्कार, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
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गजेंद्र सिंह बिष्ट – 11 साल पहले मुंबई में 26/11 के आतंकी हमले में हवलदार गजेंद्र सिंह बिष्ट जो की उत्तराखंड के रहने वाले थे, उन्होंने नरिमेन हाउस में जमे आतंकियों के खिलाफ जवाबी हमला बोला, और कईयो को मार गिराया। लेकिन इसी जवाबी कारवाई के दौरान कई गोलियां उन्हें भी लगी जिससे वो गंभीर रूप से घायल हो गए। लेकिन उन्होंने उसके बावजूद भी अपनी टीम को आतंकियों से बचाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और खुद हमेशा-हमेशा के लिए सो गए। एनएसजी के इस कमांडो को 26 जनवरी 2009 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा अशोक चक्र पुरस्कार के साथ सम्मानित किया गया।
विजय सालस्कर- मुंबई पुलिस में सेवारत एक वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर अलग अलग मुठभेड़ों में 75-80 अपराधियों को मार गिराने का श्रेय दिया जाता है। सालस्कर भी उस काली रात को आतंकवादियों से लड़ रहे थे, जिसके दौरान वो शहीद हो गए। उनकी इस शहादत को देश ने सलाम किया और राष्ट्रपति ने इन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया।
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तुकाराम ओम्बले- मुंबई पुलिस कार्यरत एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर तुकाराम ओम्बले ही वो इंस्पेक्टर थे जिन्होंने कसाब को जिंदा पकड़ने में सफलता हासिल की थी। लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि, उनकी ये सफलता उन्हें मौत की तरफ ले जा रही है। क्योंकि जिस समय उन्होंने कसाब को पकड़ा, उसी वक्त कसाब ने उन्हें गोलियों से भून दिया। इस कारण तुकाराम की मौके पर ही मौत हो गई। लेकिन उनकी शहादत और बहादुरी ने कसाब जैसे आतंकवादी को जिंदा पकड़वा दिया। ओम्बले के इस साहसपूर्ण कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें अशोक चक्र से नवाजा।
ये लिस्ट इतनी ही नहीं है, इस हमले में जान गवाने वाले कई थे, जिनको कभी भूला नहीं जा सकता । हमारी ट्रेंडिंग न्यूज की टीम शहीद जवानों को शत-शत नमन करती है।