पढ़िए कब-कब हुआ भारत और चीन की सीमा पर हिंसक टकराव

by Mahima Bhatnagar
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मौजूदा वक्त में भारत और चीन दो ऐसे पड़ोसी हैं, जिनके बीच बॉर्डर पर हलचल तो बनी रहती है, लेकिन कभी गोलीबारी नहीं की जाती। चीन की विस्तारवादी नीति को अपनाते हुए उसकी सेना भारतीय सीमा में हस्तक्षेप की कोशिश करती रहती है, जिसका सेना द्वारा माकूल जवाब दिया जाता है।कई बार तो हालात ऐसे बन जाते हैं कि महीनों तक दोनों सेनाएं आमने-सामने आ जाती हैं, मगर टकराव जानलेवा नहीं होता था. गलवान घाटी की घटना ने इस करार को तोड़ दिया है और दोनों तरफ से जवानों की मौत हुई है। यानी एक बार फिर वही दौर वापस आ गया है कि जब भारत-चीन सीमा पर जवानों की मौत होती थी।

दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा टकराव 1962 में हुआ, जो युद्ध में तब्दील हो गया। 1962 में चीन को जीत मिली थी। कहा जाता है कि भारत युद्ध के लिए तैयार ही नहीं था, जिसके चलते उसे शिकस्त झेलनी पड़ी। हालांकि, उस लड़ाई में भी कुछ क्षण ऐसे रहें जब भारतीय सेना ने अपना लोहा मनवाया। लेकिन 1967 में तो सेना ने चीन को सबक सिखा दिया।

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1967 में भारतीय सैनिकों ने चीन के दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देते हुए सैकड़ों चीनी सैनिकों को न सिर्फ मार गिराया था, बल्कि उनके कई बंकरों को भी ध्वस्त कर दिया था। नाथु ला दर्रे की वो घटना आज भी चीन के लिए बड़ा सबक माना जाती है।

1967 में नाथु ला दर्रे पर हुआ टकराव

1967 का टकराव तब शुरू हुआ जब भारत ने नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर को परिभाषित किया। 14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है, जिससे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान चीन ने भारत को नाथु ला और जेलेप ला दर्रे खाली करने को कहा। भारत के जेलेप ला तो खाली कर दिया, लेकिन नाथु ला दर्रे पर स्थिति पहले जैसी ही रही। इसके बाद से ही नाथु ला विवाद का केंद्र बन गया।

भारत ने सीमा परिभाषित तो चीन ने आपत्ति की और हाथापाई व टकराव की नौबत आ गई. कुछ दिन बाद चीन ने मशीन गन फायरिंग की मदद से भारतीय सैनिकों पर हमला किया और भारत ने इसका जवाब दिया.. कई दिनों तक ये लड़ाई चलती रही और भारत ने अपने जवानों की पोज़िशन बचाकर रखी।

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चीनी सेना ने बीस दिन बाद फिर से भारतीय इलाके में आगे बढ़ने की कोशिश की। अक्टूबर 1967 में सिक्किम तिब्बत बॉर्डर के चो ला में ये घटना हुई थी और ये जगह नाथू ला के पास ही थी। कुछ जवानों की शहादत के बावजूद भारत ने तब भी चीन को करारा जवाब दिया था और चीन को अपने इरादों के साथ पीछे धकेल दिया था। तब भारतीय सेना के ऐसे तेवर देखकर चीन भी हैरान रह गया था. उस समय भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।

1975 में चीन ने भारतीय सेना पर अटैक किया

1967 की ये शिकस्त चीन कभी हजम नहीं कर पाया और लगातार सीमा पर टेंशन बढ़ाने की कोशिश करता रहा. ऐसा ही एक मौका 1975 में आया। अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों की पेट्रोलिंग टीम पर अटैक किया गया। इस हमले में चार भारतीय जवान शहीद हो गए। इस घटना पर भारत सरकार की तरफ से कहा गया कि 20 अक्टूबर 1975 को चीन ने LAC क्रॉस कर भारतीय सेना पर हमला किया। हालांकि, चीन ने भारत के इस दावे को नकार दिया। चीन की तरफ से कहा गया की भारतीय सैनिकों ने एलएसी क्रॉस कर चीनी पोस्ट पर हमला किया और पूरी घटना को जवाबी कार्रवाई करार दिया।

1987 में भी टकराव देखने को मिला, ये टकराव तवांग के उत्तर में समदोरांग चू रीजन में हुआ। भारतीय फौज नामका चू के दक्षिण में ठहरी थीं, लेकिन एक आईबी टीम समदोरांग चू में पहुंच गई, ये जगह नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर है। समदोरंग चू और नामका चू दोनों नाले नयामजंग चू नदी में गिरते हैं। 1985 में भारतीय फौज पूरी गर्मी में यहां डटी रही, लेकिन 1986 की गर्मियों में पहुंची तो यहां चीनी फौजें मौजूद थीं। समदोरांग चू के भारतीय इलाके में चीन अपने तंबू गाड़ चुका था, भारत ने पूरी कोशिश की कि चीन को अपने सीमा में लौट जाने के लिए समझाया जा सके, लेकिन अड़ियल चीन मानने को तैयार नहीं था।

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भारतीय सेना ने ऑपरेशन फाल्कन चलाया और जवानों को विवादित जगह एयरलैंड किया गया। जवानों ने हाथुंग ला पहाड़ी पर पोजीशन संभाली, जहां से समदोई चू के साथ ही तीन और पहाड़ी इलाकों पर नजर रखी जा सकती थी। लद्दाख से लेकर सिक्किम तक भारतीय सेना तैनात हो गई। हालात काबू में आ गए और जल्द ही दोनों देशों के बीच बातचीत के जरिए मामला शांत हो गया।

हालांकि, 1987 में हिंसा नहीं हुई लेकिन अब 2020 में आकर एक बार फिर चीनी सेना ने टकराव को हिंसा में बदल दिया है। गलवान घाटी में 15 जून को जब दोनों सेनाओं के बीच बातचीत चल रही थी तो चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों पर अटैक किया।