पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र के विधान सभा चुनाव परिणाम को चुनौती देते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट में एक चुनावी याचिका दायर की है।
ममता ने मांग की है कि निर्वाचन अधिकारी द्वारा संचालित मतगणना प्रक्रिया में भ्रष्ट आचरण और विसंगतियों के आधार पर सुवेंधु अधिकारी के चुनाव को अमान्य घोषित किया जाए। इसी संदर्भ में आइए जानते हैं की आखिर कैसे दी जाती है चुनावी नतीजों को चुनौती?
चुनावी याचिका क्या है?
परिणाम के बाद, एक चुनावी याचिका एक मतदाता या एक उम्मीदवार के लिए उपलब्ध एकमात्र कानूनी उपाय है यह साबित करने काकि चुनाव में कदाचार हुआ है।
निर्वाचन क्षेत्र जिस राज्य में स्थित है, उस राज्य के उच्च न्यायालय में एक यह याचिका प्रस्तुत की जाती है। ऐसी याचिका चुनाव परिणाम की तारीख से 45 दिनों के भीतर दायर करनी होती है; उसके बाद अदालतों द्वारा इसको मान्य नहीं माना जाता है।
हालांकि प्रतिनिधि अधिनियम 1951 के अनुसार उच्च न्यायालय को छह महीने के भीतर ऐसे मामलों को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए, परंतु वास्तविकता में यह कई बार वर्षों तक चलता है।
इसे भी पढ़ें: कोविड से मरने वालों पे आश्रितों के लिए केंद्र सरकार ने पेंशन योजना के विस्तार की घोषणा की
किन आधारों पर दाखिल की जा सकती है याचिका?
प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 100 के तहत चुनाव याचिका निम्न आधारों पर दायर की जा सकती है कि:
- प्रतिनिधि अधिनियम की धारा 123 में भ्रष्ट आचरण की एक विस्तृत सूची है, जिसमें रिश्वतखोरी, बल प्रयोग या जबरदस्ती, वोट देने की अपील करना या धर्म, जाति, समुदाय और भाषा के आधार पर मतदान से बचना शामिल है।
- विजेता उम्मीदवार के नामांकन की अनुचित स्वीकृति या नामांकन की अनुचित अस्वीकृति।
- मतगणना प्रक्रिया में कदाचार, जिसमें अवैध वोट की गिनती होना शामिल है।
- संविधान या प्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों के तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेशों का पालन न करना।
अदालतों के पास क्या शक्ति है?
एक चुनाव याचिका पर फैसला, अगर याचिकाकर्ता के पक्ष में पाया जाता है, तो एक नया चुनाव हो सकता है या अदालत एक नए विजेता की घोषणा कर सकती है।
ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध 1975 का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला है, जिसने चार साल पहले इंदिरा गांधी के रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव को भ्रष्ट आचरण के आधार पर रद्द कर दिया था।
एक और हाई-प्रोफाइल मामला 2008 में राजस्थान विधान सभा चुनाव में कांग्रेस नेता सी पी जोशी की एक वोट से हार का था।