अंतरराष्ट्रीय सीमा से मात्र 14 किलोमीटर दूर जम्मू में भारतीय वायुसेना के हवाई अड्डे पर रविवार को हुए ड्रोन हमले के बाद देश में महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की रक्षा करने वाली ड्रोन रोधी प्रणाली की आवश्यकता महसूस होने लगी है। जम्मू हमला भारत में पहला ऐसा उदाहरण था जहां एक ड्रोन को हथियार बनाया गया था।
लक्षित हमलों को अंजाम देने के लिए अमेरिका द्वारा मध्य पूर्व में, विशेष रूप से इराक और सीरिया में ड्रोन का उपयोग जाता रहा है। 2020 में, ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी, अपने सर्वोच्च नेता के बाद ईरान में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति, इराक में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया था। 2018 में, वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने भी दावा किया कि वह विस्फोटकों के साथ ड्रोन से जुड़े एक हत्या के प्रयास से बच गए।
कैसे निपटा जा सकता है इन हमलों से?
कई रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनियोंने, वर्षों से, ड्रोन का मुकाबला करने के लिए ऑफ-द-शेल्फ एंटी-ड्रोन तकनीक की पेशकश शुरू कर दी है।
मुख्य रूप से इज़राइल, अमेरिका और चीन से बाहर की कंपनियों ने मौजूदा तकनीकों जैसे रडार, फ़्रीक्वेंसी जैमर, ऑप्टिक और थर्मल सेंसर आदि का उपयोग करके एंटी-ड्रोन सिस्टम विकसित किए हैं।इन तकनीकों से खतरे का आकलन और उसे निष्प्रभावी किया जाता है। कुछ सिस्टम ड्रोन की उपस्थिति की निगरानी और अलर्ट करते हैं, जबकि अन्य बैलिस्टिक और यहां तक कि लेजर की सहायता से ड्रोन को नष्ट कर देते हैं।
मौजूदा एंटी-ड्रोन सिस्टम क्या हैं?
रक्षा कंपनी राफेल ने ड्रोन डोम नामक एंटी–ड्रोन तकनीक विकसित की है। आयरन डोम की तरह, जो आने वाली मिसाइलों की पहचान करता है और उन्हें रोकता है, ड्रोन डोम,ड्रोन का पता लगाता है और उन्हें नष्ट करता है। स्थिर रडार, रेडियो फ्रीक्वेंसी सेंसर और कैमरों से लैस होने के साथ यह “360-डिग्री कवरेज” प्रदान करता है।साथ ही ड्रोन डोम हमलावर ड्रोन को भेजे जा रहे सिग्नलको अवरुद्ध करने और दृश्य को अवरुद्ध करने में सक्षम है। हालाँकि, इसका मुख्य आकर्षण वह सटीकता है जिसके साथ यह लक्ष्य को नीचे गिरानेके लिए उच्च शक्ति वाले लेजर बीम को शूट कर सकता है। राफेल का कहना है कि इसकी तकनीक हर मौसम में और रात के समय में भी सटीकता से काम करती है।
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कुछ अन्य तकनीकों में हमलावर ड्रोन का पीछा करने और पकड़ने के लिए एक इंटरसेप्टर ड्रोन का उपयोग करती है जिसे ‘ड्रोनहंटर’ कहा जाता है। ड्रोनहंटर अपने ‘नेटगन’ से एक मकड़ी के जाले के आकार के जाल से लक्ष्य को पकड़ने और उन्हें टो करने के लिए फायर करता है।
इसके अलावा कई बार रेडियो फ्रीक्वेंसी मेंव्यवधान डाल के हमलावर ड्रोन के वीडियो फीड को बाधित किया जाता है और इसे मौके पर उतरने या ऑपरेटर के पास वापस जाने के लिए मजबूर किया जाता है।
क्या भारत के पास है अपना कोई समाधान?
भारत के रक्षा मंत्रालय द्वारा मार्च में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने एक ‘ड्रोन रोधी प्रणाली’ विकसित की है और इसे इस साल तैनात किया जाएगा।
इसे 2020 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भारत यात्रा के दौरान तैनात किया गया था। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सिस्टम अहमदाबाद में 22 किमी लंबे रोड शो के लिए किए गए सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा था।
उसी वर्ष प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के संबोधन के अवसर पर लाल किले के पास इसका फिर से उपयोग किया गया। यह एंटी-ड्रोन सिस्टम 3 किमी दूर से ड्रोन का पता लगा सकता है और उसे जाम कर सकता है।साथ ही, ये 1 से 2.5 किमी दूर के लक्ष्यों पर फायर करने के लिए लेजर हथियार का उपयोग करता है।