भारत में इनदिनों न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लग रहे है। जजों द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर इस तरह अपनी बातो को रखना लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। वही मुद्दे को लेकर राजनीत गर्म हो चली है। वही विपक्ष बिना कोई मौका गवाएँ अपना काम बखूबी से निभाते हुए सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर महाभियोग प्रस्ताव उपराष्ट्रपति को सौप दिया है। ये ऐसा पहला मौका नहीं, CJI से पहले 6 अन्य न्यायधीशों पर महाभियोग चल चुका है, लेकिन इन में से किसी को हटाया नहीं जा सका। दुर्व्यवहार या भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद किसी भी न्यायधीश को महाभियोग के जरिये हटाना आसान नहीं , क्योंकि महाभियोग की प्रक्रिया काफी जटिल और लंबी होती है। हालांकि छह न्यायाधीशों के खिलाफ प्रस्ताव जरूर आए हैं, पर मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ पहली बार ऐसा प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही है। संविधान के अनुसार सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से लोकसभा और राज्यसभा दोनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर न्यायाधीश को केवल राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जा सकता है। साथ ही सदन के कम से कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत और मतदान करना भी जरूरी है।
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इन न्यायधीशों पर आया है महाभियोग प्रस्ताव
जस्टिस वी.रामास्वामी
आजाद भारत में पहली बार किसी जस्टिस को पद से हटाने की कार्यवाही 1991 में हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी महाभियोग का सामना करने वाला पहले जस्टिस थे। उनके खिलाफ 1991 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि यह प्रस्ताव लोकसभा में गिर गया था। उनके खिलाफ 1990 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के आधार पर पद से हटाने के लिये महाभियोग प्रस्ताव पेश किया गया था।
2. जस्टिस सौमित्र सेन
साल 2011 में कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ ऐसा ही प्रस्ताव राज्यसभा सदस्यों ने पेश किया था। हालांकि उन्होंने इस प्रस्ताव पर लोकसभा में बहस शुरू होने से पहले ही 1 सितंबर, 2011 को अपना इस्तीफा दे दिया था। राष्ट्रपति को भेजे अपने त्यागपत्र में उन्होंने लिखा था कि वे किसी भी तरह के भ्रष्टाचार के दोषी नहीं है।’
3. जस्टिस पीडी दिनाकरण
इस लिस्ट में कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस पीडी दिनाकरण का भी नाम शामिल है। उनपर पद का दुरुपयोग करके जमीन हथियाने और बेशुमार संपत्ति अर्जित करने जैसे आरोप लगे थे। इस मामले में भी राज्यसभा के ही सदस्यों ने उन्हें पद से हटाने के लिए कार्यवाही के लिए याचिका दी थी। मामले में काफी दांव-पेंच अपनाए गए, जिसके बाद जनवरी, 2010 में गठित जांच समिति के एक आदेश को जस्टिस दिनाकरण ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन उन्होंने भी कार्यवाही पूरी होने से पहले ही 29 जुलाई, 2011 को पद से इस्तीफा दे दिया।
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4. जस्टिस एसके गंगले
2015 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस एस. के. गंगले के खिलाफ राज्यसभा के सदस्यों ने महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस सभापति को दिया था। उन पर साल 2015 में एक महिला न्यायाधीश के यौन उत्पीड़न के आरोप लगे थे। जस्टिस गंगले ने इस्तीफा देने की बजाय जांच का सामना करना उचित समझा। दो साल तक चली जांच में उनपर यौन उत्पीड़न का आरोप साबित नहीं हुआ और इसके साथ महाभियोग प्रस्ताव सदन में पेश नहीं हुआ।
5. जस्टिस सी.वी. नागार्जुन रेड्डी
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस सीवी नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ भी महाभियोग की कार्यवाही के लिए राज्यसभा में प्रतिवेदन दिया गया।
6. जस्टिस जेबी पार्दीवाला
गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पार्दीवाला के खिलाफ भी महाभियोग की कार्यवाही के लिए राज्यसभा में प्रतिवेदन दिए गए। जस्टिस पार्दीवाला के खिलाफ उनके 18 दिसंबर, 2015 के एक फैसले में आरक्षण के बारे में की गई टिप्पणियों को लेकर यह प्रस्ताव दिया गया था।