चंदा मामा आएगा, दूध-भात लाएगा
चांदी के चम्मच से तुझको खिलाएगा
माई ने कह दिया, गुनगुनाते रहे हम
माड़, भात, नूून खाते रहे हम
माटी के चूल्हे पर तसला चढ़ाती थी
पानी खदकने पर खीर बताती थी
खीर के सपने सजाते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम
माई ने आंचल को कंबल बताया था
माघ के पाला में उसको ओढ़ाया था
साड़ी को गद्दा समझाते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम
आंखों के आंसू वो हमसे छुपाती थी
पानी में नून डाल हमको पिलाती थी
शर्बत समझ जीभ चटखाते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम
माई ने माड़ पिया, भात नहीं खाया
माई ने भात खाया नून नहीं मिलाया
माई का स्वाद जान इतराते रहे हम
माड़, भात, नून खाते रहे हम
वरिष्ठ पत्रकार असित नाथ तिवारी की कलम से…
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