नई दिल्ली। गणतंत्र दिवस पर किसान ट्रेक्टर मार्च में जो हुआ उस पूरे घटना से देश शर्मसार हुआ है। जिस दिन इस देश में संविधान लागू हुआ और हम उसका पर्व मनाते है उस दिन हमारे लोकतंत्र को शर्मिंदा करने वाली इस घटना की जितनी कड़ी निंदा की जाए वो कम है। कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले दो महीनों से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली की सड़कों पर शांतिपूर्ण तरीके से ट्रैक्टर परेड निकालने का वादा किया था और कहा था इस दिन किसान और जवान दोनों ही इस पर्व को शांतिपूर्ण और मर्यादित तरीके से मना कर मिसाल पैदा करेंगे।
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इसी वादे पर पुलिस ने मंजूरी भी दे दी थी। मगर प्रदर्शनकारियों का शांतिपूर्ण ट्रैक्टर परेड का वादा खोखला साबित हो गया और दिल्ली एक बार फिर से हिंसा की आग में झुलस गई। 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान जमकर बवाल हुआ और इस हिंसा में 300 के आस पास पुलिसकर्मी के घायल होने की खबर है और बारिकडिंग तोड़ने के दौरान ट्रेक्टर पलटने से एक प्रदर्शनकारी की भी मौत हुई। ट्रेंडिंग न्यूज़ पर हम आज हम इस आंदोलन और गणतंत्र दिवस पर हुए हिंसा की समीक्षा करेंगे।
किसान संगठनो ने गणतंत्र दिवस पर ट्रेक्टर परेड की घोषणा की जिसके बाद ये मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में गया और इसमें कहा गया की इससे सुरक्षा सम्बन्धी समस्या खड़ी हो सकती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ये कहकर इंकार कर दिया की शांतिपूर्ण तरीके से इस आंदोलन को करने का हर नागरिक को हमारा संविधान पूरा हक़ देता है और रही बात ट्रेक्टर परेड की तो ये किसान संगठन और पुलिस मिल कर तय करे क्यूंकि ये कानून व्यवस्था का मामला है।
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इसके बाद किसान संगठन और पुलिस के बीच लम्बे दौर की बातचीत होती है और कुछ शर्तो के साथ ट्रेक्टर परेड की इजाजत दे दी जाती है जिसपर किसान नेता हस्ताक्षर भी करते है। इनमे कुछ प्रमुख बातें थी की :
- किसान ट्रेक्टर परेड गणतंत्र दिवस के परेड के बाद 12 बजे से शुरू करेंगे और शाम को 5 बजे ख़त्म होगी ।
- इसका रूट तय किया गया और कहा गया इस रूट पर ही केवल ट्रेक्टर परेड होगा और 5000 ट्रेक्टर को ही इस परेड में जाने की इजाजत थी।
- किसान नेता इस ट्रेक्टर परेड की अगुवाई करेंगे और उनके पीछे पीछे सारे आंदोलनकारी उनका पालन करेंगे।
- लेकिन क्या ये हुआ ये बिलकुल नहीं हुआ। किसान नेता जो पूरे आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे वो परेड की अगुवाई करते कहीं भी नहीं दिखे।
12 बजे से इस परेड की इजाजत थी लेकिन सिंधु बॉर्डर पर 8 बजे के बरिकॉडडिंग तोड़ दी गयी। इसके लिए ट्रेक्टर क्रेन और जे सी बी का इस्तेमाल किया गया। ट्रेक्टर बैरिकेडिंग तोड़कर मुकरबा चौक पहुंचे और फिर रिंग रोड की तरफ से रूट को तोड़ते हुए दिल्ली में दाखिल हो कर जमकर उत्पात मचाया। सिंधु बॉर्डर को तोड़ने के बाद किसानो ने टिकरी बॉर्डर और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बैरिकेडिंग तोड़ा। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर तोड़ने वाले किसानो ने ITO पर बवाल मचाया। इसमें एक किसान की बैरिकेडिंग तोड़ने के चक्कर में ट्रेक्टर पलटने से मौत हो गयी जिसके बाद ये अफवाह फ़ैल गयी की की किसान की पुलिस की गोली लगने से मौत हो गयी है जिसके बाद आंदोलन और उग्र हो गया जिसके बाद पुलिस ने इसपर काबू करने के लिए आंसू गैस के गोले भी छोड़े।
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इसमें से के किसानो का एक जत्था लाल किला पहुंचा और निसान साहेब जो की सिख समुदाय का पवित्र झंडा उसको लाल क़िला पर फहरा दिया। इस पूरे वाकये को पकिस्तान के कई ऑफिसियल ट्विटर हैंडल पर खालिस्तान के झंडे को फहराने के तौर भी पेश किया गया। इस पूरे वाक़ये के समय बहुत सारे झंडे उस आदमी को थमाए जा रहे थे जो लाल क़िले पर निसान साहेब का फहरा रहा था उसमे ये भी देखा गया की उसने तिरंगे को झटक कर फेंक दिया। इस पूरे आंदोलन में तिरंगे के अपमान के भी बहुत सारे वीडियो सामने आये। लाल क़िले में 250-300 बच्चे इस पूरे हिंसा के समय करीब 6 -7 घंटे डर और खौफ्फ़ के साये में फंसे रहे हालांकि बाद में उनको वहाँ से सुरक्षित निकाल लिया गया।
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अगर हम इस हिंसा के बाद अगर ये सोच रहे है की सभी किसान संगठन ने इस हिंसा को अंजाम दिया तो ये भी सही नहीं है। बहुत सारे किसान संगठन ने पुलिस द्वारा तय किये गए रूट पर ट्रेक्टर परेड निकाला। लेकिन ऐसा माना जा रहा है की किसान मज़दूर संघर्ष समिति जो की सतनाम सिंह पन्नू ,सरवन सिंह पंढेर का गुट है वो अड़ा हुआ था आउटर रिंग रोड पर मार्च निकालने को वो लोग बेकाबू हो गए और हिंसा भड़क गयी। इस पूरे हिंसा की तुलना अमेरिका में हुए कैपिटील हिल हिंसा से भी की गयी। सोशल मीडिया पर कुछ लोग किसान नेता राकेश टिकैत पर प्रदर्शनकारियों को भड़काने का आरोप लगा रहे हैं। बीकेयू के नेता राकेश टिकैत का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वो किसानों को हंगामे और बवाल के लिए उकसाते दिख रहे हैं। इस वीडियो में राकेश टिकैत को कहते हुए सुना जा सकता है कि अपना झंडा भी ले आना और लाठी भी साथ रखना। अब बस आ जाओ, अब जमीन नहीं बचने वाली। जमीन बचाने आ जाओ। लोगों का मनाना है कि राकेश टिकैत के इस वीडियो के बाद से प्रदर्शनकारी और उग्र हो गए।
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इस पूरे मुद्दे के तीन पहलु है पहला किसान नेता अपने आंदोलन को संयमित और अनुशासित नहीं रख पाए। दूसरा सरकार जो लगातार कह रही थी इस आंदोलन में खालिस्तान और विदेशी फंडिंग मिल रही है उसने इसको लेकर प्रशासनिक तौर पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई वो भी तब जब इंटेलिजेंस इनपुट में इस तरह की घटना होने की सम्भावना पहले ही बता दी गयी थी। तीसरा मीडिया का एक सेक्शन था जो इसपर बहुत सारे अफवाह फैलता भी पाया गया।
दिल्ली पुलिस की भी तारीफ की जानी चाहिए जिसने बिलकुल संयमित और अनुशासित तरीके से उग्र और हिंसक आंदोलन को काबू करने की कोशिश की। इस पूरे हुरदंग और हिंसा में किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। देश में ये सन्देश गया की अगर आंदोलन किसान नेता के हाथ से बाहर जाता है तो क्या होता है और किसान नेता सभी किसानो के नुमाईंदगी भी नहीं करते है। अब सवाल ये है की आंदोलन का क्या होगा। क्या सुप्रीम कोर्ट इस हिंसा के बाद सरकार को बलपूर्वक इस आंदोलन को हटाने का आदेश देगा। क्या सरकार अब भी किसान नेताओं से बातचीत को आगे बढ़ाएगी या फिर आंदोलन को लेकर कोई निर्णायक फैसला लेगी।