एड्स| जानकारी ही बचाव! एक लाइलाज और जानलेवा बीमारी जिससे अगर बच गए तो ठीक, लेकिन अगर इस बीमारी ने जकड़ लिया तो समझो मौत निश्चित! इतनी गंभीर बीमारी होने के बाद भी सरकारी स्तर पर इसके रोकथाम के कोई ठोस उपाय नहीं हैं| सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि ये बीमारी हमारे नई नस्लों को ज्यादा प्रभावित कर रही है| लेकिन स्थानीय प्रशासन सबकुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ है! सबसे पहले जरा आंकड़ों पर गौर कीजिए:
जिला बालक बालिका
कटिहार 78 45
अररिया 26 18
किशनगंज 07 06
पूर्णिया 35 34
मधेपुरा 01 01
सहरसा 00 01
दरअसल जिन इलाके के आंकड़े हम आपको दिखा रहे हैं ये इलाका कोसी का इलाका कहलाता है| इस इलाके की एक सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि लाख कोशिशों के बाद भी कोई उद्योग धंधा इस इलाके में बड़े पैमाने पर विकसित नहीं हो सका| जिसके चलते हजारों युवा और शादीशुदा लोग इस इलाके से रोजगार की तलाश में देश के दूसरे हिस्सों में पलायन करते हैं| दूसरे अल्फाजों में कहें तो इन इलाकों में इस जानलेवा बीमारी के बढ़ने का मुख्य कारण इनका दूसरे प्रदेशों में जाना है| दूसरे प्रदेशों में ये कामगार इस बीमारी से ग्रसित होते हैं और घर लौटकर अपने परिवार को ये लोग ये जानलेवा बीमारी तोहफे में देते हैं| अब सवाल ये है कि चूक कहां हो रही है?दरअसल पलायन के शिकार इन लोगों का कोई सरकारी डाटा विभागों के पास नहीं है| जबकि हकीकत में होना ये चाहिए कि जितने लोग रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेशों में जाते हैं उनके लिए निश्चित तौर पर स्वास्थ्य परीक्षण| लेकिन तमाम योजनाएं विभाग के फाइलों में दबकर रह जाती हैं और नतीजा मिलता है वर्तमान और भविष्य की बर्बादी|
आँकड़े चौंकाते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं कि अगर हमारे बच्चे ही सुरक्षित नहीं होंगे तो हम बेहतर भविष्य की कल्पना कैसे कर सकते हैं? इस इलाके में एड्स से पीड़ित ये आंकड़े केवल बच्चों के हैं जिन्हें जन्म के समय से ही इस जानलेवा बीमारी ने घेर रखा है| जबकि स्वास्थ्य विभाग की मानें तो अगर कोई मां एड्स से ग्रसित है भी तो उसके बच्चे को एड्स से बचाया जा सकता है| सवाल उठता है कि फिर ऐसी व्यवस्था की क्यों नहीं जा रही है? इसका उत्तर भी ढूंढना कोई बड़ी बात नहीं है|
सुरक्षित प्रसव का अभाव
इस इलाके में सामाजिक संरचना भी बेतरतीब है|अमीर और गरीब के बीच खाई भी बड़ी है| घोर अशिक्षा है,लोग बच्चों को पढ़ाने भेजने के बजाए सरकारी योजनाएं लेने के फेर में ज्यादा रहते हैं| जिसका असर होता है कि बच्चों को सही शिक्षा नहीं मिल पाती है| माताएं लोक लाज के बहाने सुरक्षित प्रसव के लिए अस्पताल नहीं जाती और घर पर ही प्रसव कराना ज्यादा सुरक्षित मानती हैं| ऐसे प्रसव के चलते कई महिलाएं दम तोड़ चुकी हैं| इलाके में कुकुरमुत्ते की तरह फैले झोला छाप डॉक्टर मरीजों को भरमाते हैं और खुद तो पैसे कमाते हैं, लेकिन मरीजों को जानलेवा बीमारी का उपहार देते हैं|
सरकारी महकमा भी नींद में सोया हुआ है| न लोगों को इस बीमारी से जागरुक करने के लिए कोई अभियान चलाया जाता, और न ही महिलाओं को सुरक्षित प्रसव कराने के लिए अस्पताल आने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है|
इस बीमारी का स्लोगन ही है जानकारी ही बचाव! अगर सरकार ने बड़े पैमाने पर जानकारी फैलायी तो निश्चित तौर पर इसका लाभ लोगों को मिलेगा| लोग जागरुक होंगे तो उनकी पीढ़ी सुरक्षित होगी, माताएं भी सुरक्षित होगी, और देश का भविष्य भी सुरक्षित होगा|
कोसी में बच्चों में खासकर बच्चों में एड्स का बढ़ता मामला खतरे की घंटी है| जरुरी है इस घंटी को सुनने की और लोगों को शिक्षित करने की जिससे वो इस जानलेवा खतरे से बच सकें और उम्मीदों से भरी भविष्य की पीढी को तैयार कर सकें|