नई दिल्ली। ये देश में पहली बार हुआ है जब देश की सर्वोच्च अदालत ने किसी कानून को निलंबित किया है नहीं तो माननीय कोर्ट या तो कानों की समीक्षा करता है या फिर असवैधानिक घोषित करके रद्द। सबसे पहले आप सभी देशवासियों को लोहिड़ी और मकर संक्रांति के ढेरो शुभकामनायें। ट्रेंडिंग न्यूज़ के इस वीडियो में हम सुप्रीम कोर्ट द्वारा कानून के निलंबन का विश्लेषण करेंगे ।
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सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। CJI एस ए बोबडे, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने सुनवाई की। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में विवाद के समाधान के लिए चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया है और कहा कि अगले आदेश तक तीनों कानूनों के अमल पर रोक लगी रहेगी। इस कमिटी में बीकेयू के एचएस मान, प्रमोद कुमार जोशी, अशोक गुलाटी और अनिल घनवट सदस्य होंगे।
क्या क्या प्रमुख बाते कही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में :
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एस ए बोबडे ने कहा कि किसी भी किसान की जमीन नहीं बिकेगी। हम समस्या का समाधान चाहते हैं और हमारे पास अधिकार है कि हम कृषि कानूनों को सस्पेंड कर दे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें समिति बनाने का अधिकार है, जो लोग वास्तव में हल चाहते हैं वो कमेटी के पास जा सकते हैं। हम अपने लिए कमेटी बना रहे हैं ,कमेटी हमें रिपोर्ट देगी और कमेटी के समक्ष कोई भी जा सकता है। हम जमीनी हकीकत जानना चाहते हैं इसलिए समिति का गठन चाहते हैं। हालांकि यह न तो कोई आदेश पारित करेगा और न ही आपको दंडित करेगा, यह केवल हमें एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
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CJI ने कहा कि कल किसानों के वकील दवे ने कहा कि किसान 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली नहीं निकालेंगे। अगर किसान सरकार के समक्ष जा सकते हैं तो कमेटी के समक्ष क्यों नहीं? अगर वो समस्या का समाधान चाहते हैं, तो हम ये नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के समक्ष पेश नहीं होंगे। हम चाहते हैं कि कोई कृषि सम्बंधित जानकार व्यक्ति किसानों से मिले और पॉइंट के हिसाब से बहस करें कि दिक्कत कहां है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी ताकत हमें कृषि कानूनों के गुण और दोष के मूल्यांकन के लिए एक समिति गठित करने से नहीं रोक सकती है और यह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा होगी। समिति यह बताएगी कि किन प्रावधानों को हटाया जाना चाहिए, फिर वो कानूनों से निपटेगा। CJI ने कहा कि हम कानून को सस्पेंड करना चाहते हैं, लेकिन सशर्त। लेकिन ये अनिश्चितकाल के लिए भी नहीं किया जा सकता।
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बहस के दौरान किसानो के पक्षकार एक वकील ने कहा की सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री क्यों नहीं इस पर बात कर रहे जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा हम प्रधानमंत्री से कुछ नहीं कह सकते हैं क्यूंकि प्रधानमंत्री इस केस में पक्षकार नहीं हैं। यह राजनीति नहीं है इस बात को आपको समझाना होगा। राजनीति और न्यायपालिका में अंतर है और आपको सहयोग करना होगा।
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इस बीच किसान यूनियन के चारों वकीलों दुष्यंत दवे, प्रशांत भूषण, कॉलिन गोंसाल्विस और एचएस फूलका के नहीं आने से चीफ जस्टिस नाराज हो गए हैं।इन चारों वकीलों ने कृषि कानूनों पर प्रस्तावित समिति के समक्ष पेश होने की किसान संगठनों की इच्छा पर प्रतिक्रिया के साथ 24 घंटे से कम समय में वापस आने का वादा किया था। सीजेआई ने कहा, “बार के सदस्य, जो पहले अदालत के अधिकारी हैं और फिर अपने मुवक्किलों के वकील हैं, उनसे कुछ अदालत के प्रति वफादारी दिखाने की उम्मीद की जाती है। आप अदालत के सामने तब हाजिर होंगे जब यह आपके अनुरूप होगा और यदि नहीं होता है तो आप नहीं आएंगे, ऐसा आप ऐसा नहीं कर सकते हैं।” सीजेआई ने कहा था, ”यदि आप किसान समस्या को हल करना चाहते हैं, तो आप इसे बातचीत और बातचीत करके कर सकते हैं। अन्यथा, आप वर्षों तक आंदोलन कर सकते हैं।”
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इस पूरे सुनवाई के बाद सभी सम्बंधित पक्षों की अलग अलग प्रकिया आयी। जहां सरकार ने इसका स्वागत किया वही किसान संगठन ने कमिटी पर इस बात को लेकर ऐतराज़ जताया की ये कमिटी सरकार सरकार समर्थक है हालंकि कुछ एक्सपर्ट्स की प्रतिक्रिया ये थी की किसान आंदोलन भी विपक्ष के एजेंडा पर चल रही ख़ास इस लिए वो समस्या के समाधान पर नहीं सिर्फ कानून वापस करने को लेकर बात कर रहे है। कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा की सरकार को इससे एक फायदा ये होगा की संसद के बजट सत्र में जब विपक्ष इस पर सवाल उठाएगा तो सरकार ये कह कर निकल जायेगी की ये पूरा मामला उच्चतम न्यायालय के अधीन है। अब देखना ये है की किसानो और सरकार इस पूरे मामले को कब तक सुलझा पाते है या फिर ये मुद्दा लम्बा चलेगा।