मां यानी ममता का दूसरा नाम। मां को ही समर्पित है मदर्स डे का दिन। हर साल मई महीने के दूसरे रविवार (14 मई) को मां को सम्मानित करने के लिए मदर्स डे मनाया जाता है। दुनियाभर में मई माह के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है। खास तौर से मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर उनके दिए गए अथाह प्यार और स्नेह के लिए धन्यवाद देने का एक माध्यम है यह दिन। दुनिया भर के देशों में इस दिन मां के प्रति सम्मान दर्शाने की परंपराएं प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि मदर्स डे मनाने का शुभारंभ सबसे पहले यूनान से हुआ। तुर्की और रोम से लेकर यूरोप, ब्रिटेन और अमेरिका में भी मदर्स डे मनाने की परंपरा है। बेशक समय कितना ही बदल जाए पर हमारे देश के संस्कार ही ऐसे है कि मां का प्यार न कभी बदला है न कभी बदलेगा| हम टीवी सीरियल्स में और फिल्मों में अक्सर देखते हैं कि हर तरह की मां होती है, हिटलर से लेकर प्यारी मां, सिंपल से लेकर स्टाइलिश मां| रोल कैसा भी हो पर मां की अहमियत कभी कम नहीं होती| हर किसी जिंदगी में मां का मुकाम सबसे अलग, सबसे ऊपर और सबसे अहम होता है। मां चाहे साथ हो या ना हो, मगर उसका अहसास हमेशा साथ होता है। हमारी फिल्म और टीवी इंडस्ट्री के कलाकार भी पर्दे पर चाहे जिस रूप में नजर आएं, मगर निजी जिंदगी में अपनी मां के साथ उनका भी वैसा ही खास नाता है, जैसा आम लोगों का रहता है।
कुदरत ने सब कुछ उड़ेल दिया इस एक शब्द ‘मां’ में। वात्सल्य, जिम्मेदारी, छाया, स्नेह, अनुशासन, विश्वास, समर्पण, न जाने क्या-क्या।, शब्द थक जाएंगे पर मां नहीं थकेगी। हममें से हर एक का अपनी मां से एक अनूठा रिश्ता होता है| मां एक भावना का भी नाम है। एक मित्र में अचानक एक पल को एक मां जैसी परवाह दिखाई देती है, एक बहन में, एक भाई में यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चों में कई बार ना जाने कहां से जाग जाती है एक मां।
आज जब हम नारी सशक्तिकरण पर हम लगातार बात करते हैं तो जरूरी है कि इस युग में मां की भूमिका पर भी चर्चा करें। स्त्री की जिम्मेदारियों का आकाश अब बड़ा होता जा रहा है। आज हम उसे कई ऐसी भूमिकाओं में देख रहे हैं जिनकी शायद हमें आदत नहीं है। आज वह अपने वजूद की खोज में एक मुश्किल दौर से गुजर रही है पर ऐसा बिलकुल नहीं समझना चाहिए कि एक मां का महत्व किसी भी रूप में कम हुआ है। जरूरत है कि समाज और परिवार इस बदलाव को समझे क्योंकि मां सिर्फ हमें देती ही रहे, और हम उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी को कोई अहमियत न दें, ऐसे तो नहीं चल सकता। वैसे तो एक खास दिन तक इतनी महान भावना को सीमित कर देना सही नहीं है लेकिन फिर भी अगर इसी बहाने ‘मां’ पर बात होती है तो अच्छा ही है।
मां के हर रूप,हर त्याग,हर बलिदान को नमन।