दुनिया आतंकवादियों के ‘रक्तचरित्र’ को जानती है। सबको मालूम है कि आतंकवादी बंदूक की नोक पर युवाओं और बेगुनाहों के लहू से जिहाद लिखने को बेताब हैं। लेकिन सच यह है कि अब यह दहशतगर्द भी समझ गए हैं कि ना तो उनकी इस बेकरारी को कभी करार मिलने वाला है और ना ही वो लहू के समंदर से जेहाद का मंथन कर पाने में कभी कामयाब हो सकेंगे। इसमे कोई शक नहीं कि पिछले कुछ सालों में आतंकवादियों ने पाकिस्तान, ब्रिटेन, अमेरिका, और भारत समते दूसरे कई देशों में जो दहशतगर्दी फैलाई है उसके जख़्म अरसे तक नहीं भरेंगे।
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लेकिन अगर नई सोच और नए नज़रिये से देखें तो ये दहशतगर्द खुद भी कितनी दहशत में हैं इसका अंदाजा हमे लग जाएगा।मिस्र में जुमे की नमाज के वक्त अपने ही लोगों पर कायरता आतंकियों के हताशा और उनकी डरी हुई मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है। सच यह है कि मिस्र में आतंकी आम लोगों के बीच अपना पैग़ाम-ए-दहशत पहुंचा पाने में लगातार बुरी नाकाम हो रहे थे और यह हमला इसी नाकामी की प्रतिक्रिया है।
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