उम्मीद है बिहार की राजधानी पटना में चल रहे पुस्तक मेले का दीदार अब तक आपने कर लिया होगा। या फिर नहीं भी किया होगा तो आपने यह प्लानिंग तो जरुर ही कर ली होगी कि आप अगले कुछ दिनों में कब अपना बहुमूल्य समय निकालकर ज्ञान के इस बेमिसाल भंडार का हिस्सा बनेंगे…?। यकीनन हर साल यह पुस्तक मेला यहां आने वाले लोगों को कुछ ना कुछ खास यादें दे जाता है इस बार भी इस बेहद ही खास पुस्तक मेले में हम सब के लिए बहुत कुछ खास है। पर क्या आप जानते हैं कि हर बार राजधानी पटना में लगने वाले इस मेले का इतिहास कितना पुराना है और अपने आप में कितना खास है…?। पटना पुस्तक मेला दुनिया के 10 शीर्ष पुस्तक मेलों में स्थान रखता है। लेकिन यह तो बरसो से लगने वाले पटना पुस्तक मेले की खासियतों की सिर्फ बानगी भर है।
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आज हम आपको बताते हैं पटना पुस्तक मेले का पूरा इतिहास और साथ ही साथ यह भी बताते हैं कि इस बार के पुस्तक मेले में क्या है सबसे खास…?
पटना पुस्तक मेले का इतिहास –
पटना पुस्तक मेले की शुरुआत सन् 1985 में हुई थी। पहले दो वर्षों के अंतराल पर मेला लगता था यानी इसके बाद पुस्तक मेले का आयोजन वर्ष 1988 में किया गया। सन् 1990, 1991 और 1992 में लगातार पुस्तक मेले लगे। इसके बाद से एक बार फिर पुस्तक मेला दो वर्षों के अंतराल पर लगने लगा। वर्ष 1994 और 1996 में पटना में पुस्तक मेला लगा। अविभाजित बिहार का हिस्सा रहे रांची में भी एक साल के अंतराल पर पुस्तक मेला लगता था। रांची में 1997, 1999 और 2001 में पुस्तक मेले का आयोजन हुआ। इसके बीच के वर्षों में पटना में पुस्तक मेला लगा। ये पहली बार नहीं है, जब पटना पुस्तक मेले का आयोजन गांधी मैदान में नहीं हो रहा। इसके पहले वर्ष 2000 और 2002 में भी पटना पुस्तक मेले का आयोजन गांधी मैदान की जगह पाटलिपुत्र कॉलोनी मैदान पर हुआ था।
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देश में पटना पुस्तक मेले का स्थान दिल्ली और कोलकाता के बाद आता है।
इस बार खास है टैग लाइन और कलर थीम…?
इस बार पटना के ज्ञान भवन में पुस्तक मेले का आयोजन 2 दिसंबर से हुआ है। “नारी को सामर्थ्य दो, दुनिया बदलेगी” के टैग लाइन के साथ शुरु हुआ पटना का पुस्तक मेला कई मायनों में बेहद खास है। मेले के टैग लाइन से ही आप समझ गए होंगे कि इस बार का पुस्तक मेला समाज की आधी आबादी को सशक्त,आत्मविश्वासी, सामर्थ्यवान बनाने का संदेश दे रहा है। ऐसा अनुमान है कि इस पुस्तक मेला में लगभग 200 प्रकाशकों के भाग लेंगे। साहित्य पर चर्चा, लेखकों से मिलने – जुलने का बेहतरीन अवसर, कविता और गज़लों से सजी शाम इस बार के पुस्तक मेले में चार चांद लगा रही है। एक बेहद ही खास बात यह भी कि पहली बार यह पुस्तक मेला कलर बेस्ड हो रहा है यानी यहां आने वाले लोगों को एक खास रंग पर आधारित यह पुस्तक मेला बेहद आकर्षित कर रहा है । जी हां, यह रंग है ‘पिंक’। मेले में रंग भर जाने से इसका आकर्षण और भी बढ़ गया है।
क्या खास है मेले में…?
यूं तो ज्ञान के इस अथाह सागर में सबकुछ बेहद खास है। यानी अगर आप एक बार पटना में चल रहे पुस्तक मेले में आएंगे तो बिना कुछ ज्ञान हासिल किए आप वहां से बाहर नहीं निकल पाएंगे। मशहूर लेखकों की पुस्तकें, जानदार शख्सियतों से मुलाकात का मौका और मेले में जारी चर्चा-परिचर्चा का महिलाओं पर केंद्रित होना आपको खासा प्रभावित करेगा। इस बार पटना पुस्तक मेले में एक खास जगह भी है जहां पहुंचने के बाद आप एक बार तो वहां जरूर रुकना चाहेंगे। जी हां, यह वो जगह है जिसे देखते ही आप कुछ देर के लिए थम जाएंगे और इस नजारे को अपनी आंखों में कैद कर लेना चाहेंगे।
दरअसल ज्ञान भवन परिसर के मुख्य द्वार पर एक बड़े आकार का चरखा लगा है। यह चरखा लोगों को काफी आकर्षित कर रहा। इतना ही नहीं कई लोग तो इस चरखे के पास खड़े होकर सेल्फी भी ले रहे हैं और मोबाइल में इन बेहतरीन पलों को कैद कर रहे हैं। जाहिर है पटना पुस्तक मेले का इतिहास जितना रोमांचित करने वाला है उतना ही रोमांच भर रहा है इस बार के पुस्तक मेले का थीम। तो अब आप भी पुस्तक मेले में जाकर ज्ञान के इस रोचक भंडार का लुत्फ उठाइए।