कई बरसों से ऐसी मान्यता है कि पितरों से पशु-पक्षियों बहुत गहरा सम्बन्ध है। एवं माना जाता है कि पशु -पक्षियों के रूप में पितर हमारे बीच आते हैं और इसलिए पितरों के पसंद का खाना बनाया जाता है और पशु-पक्षियों को खिलाया जाता है। और ऐसा करने से हमें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। और पितरों कि आत्मा को शांति मिलती है। इसलिए पितृपक्ष में पशु-पक्षियों कि सेवा का विशेष महत्व है। श्राद्ध पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष महत्व रखते हैं।
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माना जाता है कि हमारे पुरखे इन कुछ जीव-जंतु के रूप में आकर आहार या भोजन ग्रहण करते हैं- कौवा , कुत्ता, गाय एवं चींटी इत्यादि। इस दौरान ये जीव आकर विशेष रूप से हमें अपना आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध के समय इन जीवों को जब भोजन कराया जाता है तभी श्राद्ध को पूरा माना जाता है। श्राद्ध के समय भोजन के पांच अंश निकाले जाते है जो पांच भागों में बाँटें जाते हैं: गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवता। भोजन के इन पांच अंशों के अर्पण को एक विशेष नाम दिया गया है पंचबली।
अब बात आती है इन पांच ही को भोजन के अंश दान के लिए क्यों चुना गया? ऐसा इसलिए क्योंकि इन सभी को एक विशेष प्रतीक माना गया है जैसे कुत्ता जल तत्व का प्रतीक, कौवा वायु तत्व का प्रतीक, चींटी अग्नि तत्व का प्रतीक, देवता आकाश तत्व प्रतीक एवं गाय पृथ्वी तत्व का का प्रतीक। और इन सभी को संतुष्ट करके पितरों की आत्मा को संतुष्ट किया जा सकता है। इसके साथ ही माना जाता है कि गाय में 5 प्रकार के तत्व होते हैं और 36 देवता गाय में निवास करते हैं इसलिए गाय की पूजा को विशेष महत्व दिया गया है।
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गाय की सेवा से श्राद्ध कर्म को पूर्ण माना जाता है। एवं इस समय पिंडदान भी किये जाते हैं जिससे पुरखों कि आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो। इसके लिए कई स्थान प्रसिद्द हैं जैसे इलाहबाद, मथुरा, वाराणसी इत्यादि। इस समय पितरों कि पसंद का ही भोजन बनाया जाता है एवं पशु पक्षी को वह भोजन श्रद्धा से करवाया जाता है और माना जाता है कि इससे वह भोजन पितरों तक पहुँच जाता है।