साल 1990 के दशक में छपरा जिले में प्रभुनाथ सिंह का खौफ माना जाता था| कहा जाता था कि खासकर मशरख विधानसभ इलाके में तो पत्ता भी प्रभुनाथ सिंह की इजाजत के बिना नहीं हिलता था| इसी बात को चुनौती दी थी तत्कालीन विधायक अशोक सिंह ने| अशोक सिंह ने उस चुनाव में जनता दल की टिकट पर प्रभुनाथ सिंह को ही हराया था| प्रभुनाथ सिंह का ये दुस्साहस ही था कि उन्होंने चुनाव जीतने के बाद अशोक सिंह को ज्यादा दिनों तक विधायक नहीं रह पाने की चेतावनी दी थी और हुआ भी यही था|बम मारकर पटना आवास पर ही अशोक सिंह की हत्या कर दी गयी थी|
किसी जमाने में सीमेंट कारोबारी से शुरु हुआ जिंदगी का सफर आगे चलकर उम्र कैद तक की सफर पूरा करेगा ये शायद प्रभुनाथ सिंह को भी पता नहीं था| प्रभुनाथ सिंह पर हत्या, रंगदारी जैसे अपराध के मामले दर्ज हैं तो कई गंभीर आरोप भी हैं| 1995 में तत्कालीन जनता दल विधायक अशोक सिंह की ह्त्या मामले में प्रभुनाथ सिंह सुर्ख़ियों में आ गए| अशोक सिंह की हत्या के पीछे असली वजह वर्चस्व की लड़ाई थी कभी प्रभुनाथ के करीबी रहे अशोक सिंह ने पाला बदलकर प्रभुनाथ को विधानसभा चुनाव में पटखनी दी थी इसी बात को लेकर प्रभुनाथ अशोक सिंह के दुश्मन बन गए और 1995 में विधायक के सरकारी आवास पर उनकी हत्या कर दी गई| प्रभुनाथ मशरख में हार जायेंगे,कभी सोचा न था| पहले वे लालू प्रसाद के साथ ही थे| 1990 में प्रभुनाथ सिंह जनता दल के विधायक बने थे और लालू प्रसाद मुख्य मंत्री| तब 27 फरवरी 1990 को हुए चुनाव में प्रभुनाथ सिंह ने कांग्रेस के हरेन्द्र सिंह को हराया था| प्रभुनाथ को 71536 और हरेन्द्र को 12498 वोट मिले थे |1995 का विधान सभा चुनाव करीब आने को था| तब बूथ कब्जे का दौर भी था |लालू ने मशरख में ही प्रभुनाथ सिंह को घेरने की चाल तैयार कर दी| जवाब में अशोक सिंह को लड़ने को तैयार किया| बहुत मुश्किल लड़ाई थी| पर,लालू प्रसाद के साथ एम वाई समीकरण के साथ तब सभी पिछड़ी जातियां भी थी|
11 मार्च 1995 को बिहार विधान सभा का चुनाव मशरख में होना था| अशोक सिंह जनता दल के प्रत्याशी बन प्रभुनाथ सिंह के मुकाबले खड़े हो गये थे| प्रभुनाथ बिपीपा से चुनाव लड़ रहे थे| लालू प्रसाद ने प्रभुनाथ सिंह को हराने के लिए जबर्दस्त कंपेनिंग की| परिणाम, प्रभुनाथ सिंह हार गये| नतीजे में विजयी अशोक सिंह को 50437 और हारे प्रभुनाथ सिंह को 31963 वोट मिले| प्रभुनाथ के लिए मशरख की हार बर्दाश्त के बाहर थी| उनके समर्थक कहने लगे कि लालू प्रसाद की मदद से जीते विधायक अशोक सिंह की जिंदगी बस 90 दिन| खैर,90 दिनों में तो कुछ भी नहीं हुआ| पर 3 जुलाई 1995 को मार ही दिए गए|
लेकिन कुछ साल बाद ही बिहार की सियासत का रंग फिर से बदलना शुरु हो गया| प्रभुनाथ सिंह अब नीतीश कुमार की जमात में शामिल हो गये थे| साथ देने को भाजपा की ताकत थी| अब प्रभुनाथ सिंह संसद का चुनाव लड़ने लगे| महाराजगंज से नीतीश कुमार की टिकट पर जीते और लोक सभा पहुंच गये| बाद में हारे भी| स्वभाव से प्रभुनाथ सिंह को अक्खड़ माना जाता है| बाद में नीतीश कुमार से भी तन गई |
प्रभुनाथ जब नीतीश कुमार से झगड़ लिए,तो लालू प्रसाद ने फिर से उनके लिए दरवाजा खोल दिया|पुरानी बातों और अशोक सिंह के मर्डर को भी भूल गए,जोकि हजारीबाग कोर्ट में चल ही रहा था सिवान के महाराजगंज सीट के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के राजनीतिक करियर की शुरुआत जनता दल से हुई थी इसके बाद वे जनता दल यूनाइटेड के साथ जुड़ गए और लगातार महाराजगंज की राजनीति में सक्रिय रहे. इसी दौरान उनका सामना सीवान के पूर्व दबंग सांसद शहाबुद्दीन से हुआ और दोनों को एक-दूसरे के दुश्मन के तौर पर देखा जाने लगा. अक्सर इन दोनों के बीच झड़पें हो जाती थी हालांकि, दोनों का ही अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में वर्चस्व रहा है. फिलहाल, राजद से जुड़े होने के कारण शहाबुद्दीन और प्रभुनाथ के बीच दोस्ती हो गई है|प्रभुनाथ ने पहली बार महाराजगंज संसदीय सीट से साल 2004 में जदयू के टिकट पर जीत हासिल की|इससे पहले वे क्षेत्रीय स्तर की राजनीति में जदयू की तरफ से सक्रिय रहे हालांकि, 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में राजद के प्रत्याशी उमाशंकर सिंह ने प्रभुनाथ को 3,000 वोटों से हरा दिया था. 2012 में वे जदयू से अलग हो गए और राजद के सदस्य बन गए