एक बार फिर निर्भया के चार दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां की मनीला रस्सी सुर्खियों में है। हालांकि, अभी किसी भी जेल से मनीला रस्सी की मांग नहीं की गई है|
देश में आजादी के पहले से अबतक जितनी फासी दी गई, उनमें बक्सर जेल में बनी मनीला रस्सी का ही इस्तेमाल हुआ।
मनीला रस्सी का इतिहास
वर्ष 1844 ई. में अंग्रेज शासकों द्वारा केन्द्रीय कारा बक्सर में मौत का फंदा तैयार करने की फैक्ट्री लगाई गई थी। इससे पहले यह रस्सी फिलीपिंस के मनीला जेल में बनती थी, इसलिए इसे मनीला रस्सी भी कहा जाता था। यहां तैयार किए गए मौत के फंदे से पहली बार सन 1884 ई. में एक भारतीय नागरिक को फांसी पर लटकाया गया था।
वर्तमान समय में देश में जब-जब मौत का फरमान जारी होता है, तब-तब केन्द्रीय कारा बक्सर के कैदी ही मौत का फंदा तैयार करते हैं। फैक्ट्री लॉ में बक्सर केन्द्रीय कारा को छोड़ कर इस क्वालिटी की रस्सी के निर्माण पर पूरे देश में पूर्ण प्रतिबंध है।
कैदी बनाते हैं रस्सी
केंद्रीय कारा के कैदी पुनर्वास प्रशिक्षण केंद्र में फांसी का फंदा वाली रस्सी का निर्माण होता है। देश व समाज दुश्मनों को उनके किए की सजा देने के लिए बनाई जाने वाली मनीला रस्सी खास होती है। गले में लिपट बिना तकलीफ मौत की नींद सुलाने वाली रस्सी को बनाने के लिए खास विधि अपनाई जाती है।
पहले कच्चे सूत से एक-एक कर अठारह धागे तैयार किए जाते हैं। सभी को मोम में पूरी तरह संतृप्त किया जाता है। इसके बाद सभी धागों को मिलाकर एक मोटी रस्सी तैयार की जाती है। एक फांसी के लिए अठारह फीट रस्सी तैयार की जाती है।