मित्रों,
पटना में लालू यादव की महागठबंधन रैली में अन्य दलों के नेताओ को सुना। लगा कि यह गठबंधन नहीं बल्कि महा ठग बंधन रैली है। यह मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्यों कि 80 के दशक में मैं पत्रकारिता नहीं करता था। देश का समूचा विपक्ष ग़ैर कांग्रेसवाद के नाम पर, परिवारवाद के ख़िलाफ़ एकजुट था। ख़ैर ! बात करूँगा तो लम्बी बात हो जायेगी ।विपक्ष कहता था यह देश किसी की बपौति नहीं है कि नेहरू के बाद इन्दिरा गांधी उसके बाद राजीव गांधी, संजय गांधी………
जब यही विपक्ष सत्ता में आया तो वह भी अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्रों को देने का प्रयास करने लगा,सफल नहीं हो पाए यह अलग बात है फिर भी प्रयास जारी रहा। चौधरी चरण सिंह ने अपने पुत्र को।हरदनहल्ली देवेगौड़ा ने अपने पुत्र को। मुलायम सिंह यादव ने अपने पुत्र को। लालू यादव ने अपनी पत्नी को और अब अपने पुत्र को। एन टी रामाराव ने भी पुत्र को देना चाहे पर दामाद ने ले लिया। एम करुणानिधि ने भी यही किया । किस किस का नाम गिनाऊँ ! अब ग़ैर भाजपावाद के बहाने महागठबंधन। सारे राजनीतिक दल इस देश की जनता को बेवक़ूफ़ बना रहे है। देश की आज़ादी को 70 वर्ष हो गए और यह आज़ादी बूढ़ी हो गई है ! एक नई आज़ादी की लड़ाईं इस देश को लड़ना है जो आर्थिक और सामाजिक समता पर आधारित हो ।