पितृपक्ष से तो सभी वाकिफ होंगे। इन्हें श्राद्ध भी कहा जाता है। इस दौरान पुरखों की आत्मा की शांति के लिए कई कार्य किये जाते हैं जैसे पिंडदान, पंडितों को भोजन करवाना एवं पक्षियों को भोजन करवाना। ऐसा माना जाता है कि अगर पितृपक्ष के दौरान पक्षियों को पितरों के पसंद का भोजन कराया जाता है तो वह भोजन पितरों तक पहुँच जाता है।
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पितृपक्ष के दौरान इन सात जगहों पर करना चाहिए पिंडदान:
1.गया:
गया बिहार के फल्गु तट पर बसा है। यहाँ भगवान् राम और माता सीता ने राजा दशरथ की आत्मा की शांति हेतु पिंडदान किये थे। तभी से यहाँ पिंडदान का महत्व है।
2.हरिद्वार:
हरिद्वार के नारायणी शिला की बहुत मान्यता है और यहाँ पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है एवं उन्हें मोक्ष्य की प्राप्ति होती है।
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3.वाराणसी:
वाराणसी को भगवान् शिव की पवित्र नगरी माना जाता है। बनारस के घाट पर अस्थि विसर्जन एवं श्राद्ध किये जाते हैं।
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4.बद्रीनाथ:
बद्रीनाथ चारों धामों में से एक है एवं मान्यता है कि यहाँ पिंडदान करने से पुरखों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। पिंडदान के लिए यह एक पवित्र एवं महत्वपूर्ण स्थान है।
5. प्रयागराज
प्रागराज को संगम भी कहा जाता है एवं संगम पर पितरों का तर्पण बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। यहाँ पितरों के तर्पण से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
6. मथुरा:
मथुरा भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है इसलिए इसे पुण्य भूमि भी कहा जाता है। यहाँ वायुतीर्थ पर पिंडदान पर पपिण्डदान की प्रथा का चलन है।
7. जगन्नाथ पुरी
जगन्नाथ पुरी पवत्र स्थल है एवं चारों धाम में से एक है। यहाँ पिंडदान की अलग ही प्रथा है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए यहाँ पूजा की जाती जिससे पितरों को मोक्ष प्राप्त हो।
ये सभी स्थल बहुत ही पवित्र और प्रसिद्द हैं एवं इन सभी पवित्र स्थलों पर पुरखों के श्राद्ध करने से ज्यादा पुण्य मिलने की बात मानी जाती है। श्राद्ध का अर्थ होता है अपने पितरों, देवताओं एवं वंश के प्रति श्रद्धा भाव प्रकट करना। पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति का सबसे उत्तम तरीका माना गया है। पिंडदान के द्वारा पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना एवं पूजा अर्चना की जाती है।