ये राजनीति है कई बार इसकी दिशा और दशा हमारी सोच और आकलन से परे होती है। बिहार के राजनीतिक पटल पर घटित पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर गौर करें तो जो चित्र बनती है वो कमोबेश यही कहती है।आगे और भी बहुत कुछ है जिससे पर्दा उठना अभी बाकी है ।
सत्ता के हाथ से चले जाने के बाद जहां एक तरफ आरजेडी जमकर पसीना बहा रही है और नीतीश-बीजेपी के खिलाफ पूरी तरह से मैदान में उतर गई है वहीं कांग्रेस के बड़े नेताओं का रुख शांत और शिथिल नजर आ रहा है। तेजस्वी यादव ने 9 अगस्त को चंपारण की धरती से जनादेश अपमान यात्रा निकाला था। इस यात्रा के लिए कांग्रेस को भी आमंत्रित किया गया लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने इस रैली में शामिल होने से इनकार कर दिया था हालांकि कहा गया कि स्थानीय नेता इस यात्रा में शामिल होंगे। इतना ही नहीं लालू यादव और उनकी पार्टी जिस आक्रामक अंदाज में नीतीश कुमार और बीजेपी को घेर रही है वो तेवर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी में हाल के दिनों में बिल्कुल नजर नहीं आ रहा है।
अब बात लालू की “देश बचाओ भाजपा बागाओ” रैली कि करें तो इसे लेकर कांग्रेस के नेता बहुत उत्साहित नजर नहीं आ रहे हैं। सूत्रों की माने तो कांग्रेस के कई दिग्गज नेता जेडीयू-बीजेपी के संपर्क में हैं। चर्चा है की कांग्रेस के कई विधायकों और विधान पार्षदों कि जेडीयू और बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ की गुप्त मीटिंग भी हुई थी। माना जा रहा है कि लालू यादव की रैली के बाद कई ऐसे चेहरे भी कांग्रेस को बाय-बाय कर सकते हैं जिनके पार्टी छोड़ने के बारे में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है। कांग्रेस के प्रवक्ता भी कई बार मीडिया को बयान दे चुके हैं कि नीतीश कुमार और एनडीए कांग्रेस के विधायकों को लुभाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ अभी हाल ही में एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के संयुक्त कार्यक्रम मिलाप में नई और पुरानी पीढ़ी के बहुत सारे नेता उपस्थित हुए थे। लेकिन इस कार्यक्रम में प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी का मौजूद ना होना सबके लिए चर्चा का विषय बना रहा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह भी महागठबंधन की सरकार में मंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर बहुत दिनों से नाराज चल रहे हैं।
असल में जब महागठबंधन की सरकार बनी थी उसके बाद से ही अशोक चौधरी का विरोधी खेमा पार्टी में एक व्यक्ति,एक पद की मांग करता रहा है। चूंकि अशोक चौधरी तत्कालीन महागठबंधन की सरकार में मंत्री पद पर भी आसीन थे और इसके साथ ही प्रदेश अध्यक्ष पद भी उनके पास ही था। लेकिन अब कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर किसी नए चेहरे को मौका देने का मन बना लिया है। हम आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी के अंदर भी लालू के साथ या फिर लालू से अलग रहने को लेकर दो राय बनी हुई है। कुछ ऐसे भी नेता हैं जिनका मानना है कि अभी लालू के साथ रहकर भी उन्हें बहुत लाभ नहीं मिलने वाला है तो संभवत: कई लोग सत्ता पक्ष के साथ चिपकना ज्यादा बेहतर मानते हैं। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस के 10 से ज्यादा विधायक और विधानपार्षद अच्छे ऑफर का इंतजार कर रहे हैं। वैसे भी राजनीति में कब कौन किस तरफ टर्न मार दे इसके बारे में आंकलन नहीं किया जा सकता है।