मुस्लिमों में प्रचलित तीन तलाक, बहु विवाह और निकाह हलाला पर सुप्रीमकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में गुरवार से सुनवाई शुरू होगी। कोर्ट मौलिक अधिकारों को संवैधानिक दायरे में जांचे परखेगा। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ मामले की सुनवाई करेगी। वैसे तो न्यायिक पीठ का कोई धर्म नहीं होता। पीठ हमेशा जाति, धर्म, वर्ण और वर्ग से ऊपर होती है और वे सिर्फ न्यायाधीश ही होते हैं,उनकी कोई और पहचान नहीं हो सकती। लेकिन जो पीठ इस मामले की सुनवाई कर ही है वो भी काफी खास है। पीठ में पांच धर्मो के न्यायाधीश शामिल हैं।पांच न्यायाधीशों में से मुख्य न्यायाधीश सहित तीन न्यायाधीश हाईकोर्ट से सुप्रीमकोर्ट आये हैं जबकि न्यायमूर्ति रोहिंग्टन फली नारिमन और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित सीधे वकील से सुप्रीमकोर्ट न्यायाधीश नियुक्त हुए हैं। जस्टिस रोहिंग्टन सालिसिटर जनरल रह चुके हैं जबकि जस्टिस ललित देश के जाने माने वरिष्ठ वकील थे।
ये न्यायाधीश करेंगे सुनवाई
1- मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर
2- जस्टिस कुरियन जोसेफ
3- जस्टिस रोहिंग्टन फली नारिमन
4- जस्टिस उदय उमेश ललित
5- जस्टिस एस. अब्दुल नजीर
सात याचिकाअों पर होगी सुनवाई
कुल सात याचिकाएं सुनवाई के लिए लगीं हैं जिनमें पांच पीड़ित महिलाओं की ओर से है। इस मामले की शुरूआत कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओँ के बराबरी के हक को देखते हुए स्वयं संज्ञान लेकर की थी। बाद में पीड़ित महिलाओं ने भी तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह को चुनौती दे दी। सुप्रीमकोर्ट ने अभी तक मामले में विचार के बिंदु तय नहीं किये हैं।
हालांकि शुरूआत मे ही कोर्ट ने साफ कर दिया था कि वो संवैधानिक दायरे में कानूनी मुद्दे पर विचार करेगा। किसी की व्यक्तिगत याचिकाओं पर विचार नहीं होगा। कोर्ट ने सभी संबंधित पक्षकारों को लिखित दलीलें दाखिल करने के छूट देते हुए मामले पर गर्मियों की छुट्टी में 11 मई से नियमित सुनवाई की तिथि तय की थी।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने किया है विरोध
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने कोर्ट में दाखिल लिखित जवाब में सुनवाई का विरोध किया है। कहा है कि संविधान में उन्हें धार्मिक आजादी मिली हुई है। ये पर्सनल ला से जुड़ा मुद्दा है और कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं कर सकता। पर्सनल ला कुरान और हदीस की रोशनी में बना है और सामाजिक सुधार के नाम पर पर्सनल ला को दोबारा नहीं लिखा जा सकता। केन्द्र ने कहा महिलाओं के साथ भेदभावकेन्द्र सरकार ने अपने लिखित जवाब में एक बार में तीन तलाक को मुस्लिम महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव बताया है। कहा है कि भारतीय संविधान किसी तरह के भेदभाव की इजाजत नहीं देता।
सरकार ने विचार के लिए दिये हैं ये सवाल
1- कि क्या एक बार मे तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह को संविधान के अनुच्छेद 25(1) (धार्मिक स्वतंत्रता) के तहत संरक्षण प्राप्त है।
2- क्या अनुच्छेद 25 संविधान में प्राप्त मौलिक अधिकारों के अधीन है। विशेष तौर पर अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार) के।
3- क्या पर्सनल ला को अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जाएगा
4- क्या तीन तलाक, बहु विवाह और निकाह हलाला भारत द्वारा हस्ताक्षरित अंतरराष्ट्रीय संधियों के दायित्वों के अनुरूप है।