6 जून 1981 का वो मनहूस दिन| जिसकी यादें आज भी रुह को झकझोर देतीं हैं| घटना बताती है कि कैसे प्रकृति के आगे लोग बौने हैं और उसकी मर्जी के आगे लोगों की मर्जी कुछ भी नहीं है| इसी दिन देश के सबसे बड़े रेल हादसे में करीब तीन सौ लोगों की जानें गईं थी| मौत के तो ये सरकारी आंकड़े हैं, लेकिन स्थानीय बताते हैं कि मौत का आँकड़ा कहीं इससे उपर है| चारों तरफ बादल और तेज हवाओं के बीच ट्रेन बड़ी ही मनहूस घड़ी में मानसी से सहरसा की तरफ चली थी| कुछ दूर जाने के बाद ही मौसम ने अपना रौद्र रुप दिखाना शुरु कर दिया था| ट्रेन में काफी भीड़ थी लोग मौसम की मार से बचना चाहते थे सो उन्होंने ट्रेन की दरवाजे खिड़कियों को भी बंद कर दिया था| कहा जाए तो लोगों ने अपनी मौत की कहानी खुद ही तैयार कर दी थी| ट्रेन पर सवार यात्री खराब मौसम को देख जल्द से जल्द घर पहुंचने को बेताब थे| लेकिन उन्हें जरा भी अहसास नहीं था कि उनके लिए यह यात्रा अंतिम यात्रा होने वाली है| ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी और बागमती पुल को पार कर रही थी|
इस हादसे में बचे लोग याद ताजा कर बताते हैं कि अचानक ट्रेन के ड्राइवर ने पुल पर ही ब्रेक लगा दिया जिससे पैसेंजर ट्रेन की 9 में से 7 बोगियां बागमती नदी में गिर गयीं| एक भीषण झटके के साथ ट्रेन रुकी लेकित तबतक तो अनर्थ हो चुका था| चारों तरफ चीख पुकार मची थी एक तो बारिश और दूसरी तेज हवा कोई किसी को बचाने वाला नहीं था| हादसे के दौरान 300 लोगों की मौत हो गयी, कई लोगों का शव कई दिनों तक बोगियों में फंसा रहा| इस हादसे में मरने वालों की सरकारी आंकड़े के अनुसार संख्या 300 थी, लेकिन बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने जानकारी दी थी कि हादसे में 800 से 1000 के करीब लोग मारे गए|
देश का सबसे बड़ा रेल हादसा
इस हादसे को देश के सबसे बड़े रेल हादसे के रूप में याद किया जाता है| हादसे को लेकर कई तरह की जांच कमेटियों बिठाईं गईं लेकिन ड्राइवर ने ब्रेक क्यों लगाया था इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया| लोगों का कहना है कि बारिश तेज थी जिसके कारण लोगों ने ट्रेन की सभी खिड़कियों को बंद कर दिया और तेज तूफान होने की वजह से पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और बोगियां नदी में समा गयी|
ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगाया
उस घटना में जीवित बचे एक यात्री सहरसा निवासी ने बताया की ट्रेन पुल के ऊपर से गुजर रही थी| बाहर तेज बारिश हो रही थी| इसी वक्त ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगाया| ट्रेन फिसली, पुल तोड़कर, लबालब भरी नदी में जलविलीन हो गई| वो कहते हैं ड्राइवर ने ब्रेक इसलिए मारा था कि सामने भैंस आ गई थी| एक भैंस की जान बचाने में हजारों लोगों की जान चली गई| लोग मदद के लिए गुहार करते रहे| पर मदद के लिए घंटों तक कोई नहीं आया| जब लोग बचाने आए, तब तक सैकड़ों लोग काल के गाल में समा चुके थे| सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 500 लोग ही ट्रेन में थे| लेकिन बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने कहा था कि मरने वालों की संख्या 1000 से 3000 के बीच हो सकती है. यानी एक्सीडेंट के वक्त ट्रेन में हजारों लोग थे| गोताखोरों ने लाशें ढूंढने के लिए हफ्तों गोते लगाए| 286 लाशें निकाल पाए| 300 से ज्यादा लोगों का आज तक कोई पता नहीं चला| आंकड़ों के हिसाब से इस रेल दुर्घटना में करीब 800 लोगों की मौत हुई| सैकड़ों लोग नदी में बह गए| ये भारत का अब तक का सबसे बड़ा ट्रेन एक्सीडेंट है| दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा|