पति की लंबी आयु की कामना करते हुए महिलाओं ने बड़ी धूमधाम से वट सावित्री का पर्व पूरे राज्य भर में मनया| वट सावित्री व्रत के दिन महिलाए वट वृक्ष की पूजा के साथ अपनी पति की दीर्घायु की कामना करती हैं और अखंड सौभाग्यवती रहने की प्रार्थना करती हैं| इस पर्व के दौरान महिलाएं श्रृंगार कर फलों और मिठाइयों के साथ भगवान का भोग लगाती हैं साथ ही वट वृक्ष को लाल और पीले धागों से बांधती हैं| इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं और पूजा के बाद पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के बाद व्रत को विराम देती हैं| मान्यता है कि सावित्री इसी दिन अपने मृत पति सत्यवान के आत्मा को, यमराज से वापस मांग ली थी| अपने सूझ बूझ से सावित्री अपने पति को जिंदा करने में सफल रही थी| बट सावित्री की पूजा दिन के मध्य में की जाती है| क्योंकि सती सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस लाकर पति को पुनर्जीवित किया था| उस समय दिन के मध्य था एवं ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या होने के कारण तेज धूप भी था| उसी समय यमराज ने सावित्री को सती सावित्री नाम से सुशोभित किया था| तभी से यह परंपरा जारी है|