करवाचौथ का दिन सभी सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत कुंवारी कन्याएं भी रख सकती हैं। इस उपवास से जुडी हुई कई कथाएं हैं। एवं यह उपवास महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए रखती हैं। यह साल की सबसे बड़ी चतुर्थी होती है। अगर कोई महिला या कोई भी व्यक्ति साल की कोई चतुर्थी का व्रत न कर पाए और एक करवाचौथ वाली चतुर्थी का व्रत रख ले तो वह सभी चतुर्थी के समान ही फल देने वाल उपवास होता है।
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यह व्रत अन्य व्रत की तुलना में बहुत कठिन होता है इस दिन सभी सुहागन महिलाएँ हिन्दू धर्म के अनुसार सुबह 4 बजे उठकर अपनी सास के द्वारा दी गयी सरगी खाती हैं इसके बाद पूरे दिन न तो जल ग्रहण करती न भोजन। रात को चन्द्रमा के निकलने के उपरांत पूजा करके एवं चन्द्रमा को अर्द्ध देने के बाद चन्द्रमा की पूजा करती हैं। फिर अपने पति की पूजा करती हैं। इसके बाद अपने पति के हाथों से जल ग्रहण करती हैं। बाद में माँ दुर्गा को भोग लगाकर उस प्रसाद को अपनी सास को खिलाती हैं एवं अपने पति और घर के सभी बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं। इस प्रकार करवाचौथ का उपवास पूर्ण होता है।
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करवाचौथ के दिन भगवान् गणेश एवं चन्द्रमा की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि इस दिन कृष्ण पक्ष की चतुर्थी होती है एवं इस दिन किये जाने वाली भगवान् गणेश की पूजा विशेष फलदायी है। इस दिन चतुर्थी तिथि ने भगवान् गणेश को प्रसन्न करने के लिए कठिन तप किया था और चन्द्रमा के निकलने पर भगवान् गणेश ने चतुर्थी तिथि को दर्शन दिए थे। इसलिए शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान् गणेश की पूजा की जाती है लेकिन चन्द्रमा निकलने के उपरांत।
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हिन्दू धर्म में करवाचौथ का विशेष महत्व इसलिए ही है। और इसी संस्कृति के चलते महिलाएँ अपने के लिए व्रत रखती हैं एवं कुंवारी कन्याएँ अच्छे पति के लिए इस व्रत को करती हैं। जैसे सुहागन चाँद को देखकर अपना व्रत खोलती हैं वैसे ही कुंवारी कन्याएँ तारे को देखकर अपना व्रत खोलती हैं। यह दिन दोनों के लिए ही विशेष फलदायी होता है।