संस्कृत क्यों विलक्षण भाषा है..
इसे जरूर पढ़ें… एक महाविद्वान से चर्चा और उनकी बकवास के बाद इसे दुबारा लिख रहा हूं। स्पष्ट कर दूं कि लेख की जानकारी गणित, भौतिकी, कंप्यूटर साइंस के एक विलक्षण विद्वान और सच्चे अर्थों में मनस्वी चिंतक, विचारक के निर्देशन में दी गई है । पैरोडीबाज देवांशु का दिमाग नहीं है–
स्मृति ईरानी ने तकरीबन ढाई साल पहले कहा था कि आईआईटी में संस्कृत भाषा भी पढ़ायी जानी चाहिए ताकि प्राचीन भारत की सबसे समृद्ध और शोधपरक भाषा में प्रतिपादित वैज्ञानिक और गणितीय सिद्धांतों के बारे में लोग जान सकें । अब चूंकि आधुनिक और प्रगतिशील भारतीयों के लिए संस्कृत देवी-देवताओं की अभ्यर्थना मात्र की भाषा है इसलिए उसे पढ़ने की जरूरत ही नहीं है बल्कि उनके मुताबिक तो संस्कृत पढ़ना मूढ़मति या जड़ होना है ।
दूसरे वो लोग हैं जो संस्कृत को ब्राह्मणों की भाषा कहकर तमिल तेलुगु और प्राकृत-पाली के लिए ऐसी ही मांगें करने लगते हैं । उन्हें यह समझना चाहिए कि प्राचीन भारत में बौद्धिक और गणितीय -वैज्ञानिक सिद्धांतों की मानक भाषा संस्कृत ही थी । वराहमिहिर, भास्कराचार्य और आर्यभट्ट प्राकृत या पाली में नहीं लिखते थे, न उन भाषाओं में उनका बौद्धिक संवाद होता था। इसलिए संस्कृत भाषा को पढ़ना जरूरी है । साथ ही हमें यह समझने की जरूरत भी है कि क्यों संस्कृत भाषा और प्राचीन भारत में सोचे-विचारे जाने वाले वैज्ञानिक सिद्धांत महत्वपूर्ण थे ।
खासकर इसे पश्चिमी विद्वानों के नजरिए से समझना ज्यादा जरूरी है क्योंकि उनकी बातों की पूछ ज्यादा है । भले ही कोई बड़ा भारतीय विद्वान उनसे बहुत बेहतर तरीके से हमें समझा सके कि प्राचीन भारत में गणित और विज्ञान पर हमारी समझ कैसी थी ।
सबसे पहले हमें संस्कृत के व्याकरण की बात करनी चाहिए । खासकर पाणिनि के व्याकरण की । आधुनिक भाषाओं के व्याकरण से जब हम पाणिनि के संस्कृत व्याकरण की तुलना करते हैं तो उसे भिन्न पाते हैं । क्योंकि पाणिनि वैयाकरण से पहले गणितज्ञ थे । उन्होंने सबसे पहले इस बात को समझा कि भाषा का एक एल्जेब्रिक स्वरूप हो सकता है । चूंकि प्राचीन भारतीय गणित अपनी संरचना में एल्जेबरा के नजदीक है, (भास्कराचार्य के देखें ) और इस क्षेत्र में तब ज्यादा काम किया गया था (जैसे कि यूनान में त्रिकोणमिति के जानकार थे ) इसलिए उन्होंने संस्कृत के व्याकरण को एक एल्जेब्रिक गणितीय भाषा का रूप दिया । वह व्याकरण एक स्पष्ट, सुनिर्देशित और सुव्याख्यायित सिद्धांतों से कार्य करता है । उसकी हर पंक्ति एक नियम से तय होती है । पाणिनि के व्याकरण में लोकाचार से भाषा में छूट का कोई स्थान नहीं है जैसा कि हिन्दी या दूसरी भाषाओं के व्याकरण में होता है । यानी उसका एक मानक लैंग्वेज है जिसे हम बड़ी ही आसानी से आधुनिक कंप्य़ूटर के लैंग्वेज से तादात्म्य कर सकते हैं ।
कंप्यूटर का लैंग्वेज मशीनी होने के कारण भाषा के इस स्वरूप को सबसे आसानी से ग्रहण करता है, क्योंकि वह खुद अपने दिमाग से किसी भाषा को नहीं रचता बल्कि एक व्याख्यायित भाषा से काम करता है । इसलिए सभी बड़े सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर और कंप्यूटर साइंस के विद्वान इस बात को मानते हैं कि पाणिनि का व्याकरण कंप्यूटर की भाषा के लिए आदर्श है । न सिर्फ कंप्यूटर की भाषा के लिए बल्कि आधुनिक भाषा विज्ञान के विद्वानों को व्याकरण और लिग्विंस्टिक्स की समझ विकसित करने में पाणिनि और प्राचीन भारतीय भाषाविदों ने अमूल्य योगदान दिया है ।
जरा देखिए, क्या कहते हैं पश्चिम के जानेमाने विद्वान शेल्डन पोलक ..
Readers who know anything about indian intellectual history are likely to know that the study of language was more highly developed in south asia than anywhere else in the premodern world. From the archaic invocation to the Goddes of Speech(vak) in the Rigveda to the etymological speculation that lies at the heart of sacerdotal thought of brahmanas to the grand synthesis of Panini and the sophisticated tradition of exegesis that it stimulated, and in many rival systems that sought to displace and surpass this tradition, premodern indian thinkers were consumed by the desire to understand the mystery of human communications and they had no peer in their explorations until in one of the subtler ironies of intellectual history. Franz Bopp, William Dwight Whitney, Ferdinand De Saussure.Emilie Beneveniste, Leonard Bloomfield and Noam Choamsky learning both substantively and theoritically from indian premodernity( being all sanskritists or students of sanskrit knowing scholars ), developed successively historical, structural and transformational linguistics and, by these new forms of thought invented some basic conceptual components of western modernity itself. Sheldon pollock, The language of the gods in the world of men )
शेल्डन पोलक जो कि प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति आलोचनात्मक रवैया रखते हैं और पारंपरिक पश्चिमी चश्मे से भारत को देखते हैं वे भी इस सत्य को मानते हैं कि आधुनिक लिग्विंस्टिक्स के जो पश्चिमी धुरंधर रहे उन्होंने भारतीय भाषा और भाषिक संरचना से बहुत कुछ लिया । दुख की बात ये है कि ब्लूमफील्ड ने पाणिनि से सीखा, नोम चोमस्की ने ब्लूमफील्ड से जाना और पाणिनि के महान व्याकरण से सब कुछ लेकर उन्हें कुछ नहीं दिया । आज दुनिया नोम चोमस्की की बड़ी इज्जत करती है लेकिन उन्होंने व्याकरण में जो पाणिनि् से लिया, कभी उसका कृतज्ञता ज्ञापन किया ?
रही बात गणित और विज्ञान की तो इसे स्वीकार करने में हमें कोई दुख नहीं होना चाहिए कि प्राचीन भारत में अंकगणित, खगोल विज्ञान और समय की संकल्पना काफी विकसित थी । श्रीमदभागवत पुराण में ब्रह्मांड की उम्र का जो उल्लेख है वह काफी हद तक क्वांटम मैकेनिक्स के आधुनिक सिद्धांत के करीब है । शायद आपको ये जानकर हैरत होगी कि 1940 के आसपास प्रतिपादित गणित के आधुनिक सिद्धांत इन्फॉर्मेशन थ्योरी की जड़ें साढ़े तीन हजार साल पुराने वेद में मिलती है । इन्फॉर्मेशन थ्योरी का कंप्यूटर साइंस में इन दिनों बहुत इस्तेमाल होता है । जो इस सिद्धांत पर काम करती है कि दी जाने वाली सूचना जब आगे बढ़े तो भ्रष्ट न हो यानी उसका मूल स्वरूप न बिगड़े । हम जानते हैं कि वेद को श्रुति कहते हैं । उस समय श्रुति को सिर्फ सुन कर ही स्मरण किया जाता था और आगे बढ़ाया जाता था ..तो ऋषियों ने श्रुति को भ्रष्ट पाठ से बचाने के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया । इस खोज के बारे में भी हमें विदेशी विद्वानों से ही पता चला है । दुखद है कि जिस भारतीय दर्शन में इस आधुनिक गणितीय सिद्धांत के बीज थे उस पर किसी की नजर नहीं पड़ी । और एक समय के बाद जब सबकुछ लिखा जाने लगा तो उस सिद्धांत की जरूरत ही नहीं रही लेकिन आधुनिक समय में थ्योरी ऑफ इन्फॉर्मेशन की जरूरत टेलिफोन से महसूस की गई जिसमें संवाद हमेशा शुद्ध नहीं होता था और इटरनेट आने के बाद तो इसकी जरूरत और बढ़ गई ।
बात छोटी सी है लेकिन बड़ी भी है कि बीसवीं सदी के दो बड़े शोध, कंप्यूटर की भाषा और इन्फॉर्मेशन थ्योरी की जड़ें भारत में थीं । यहां से ये संभावना भी प्रबल होती है कि आगे होने वाले शोधों की जड़ें प्राचीन भारत में नहीं होंगी, इसकी क्या गारंटी है ।
गणित को लॉजिक से डिराइव करने का आधुनिक सिद्धांत विदेशियों के लिए नया होगा लेकिन इस सिद्धांत पर तेरहवीं सदी में मिथिला के विद्वान गंगेश उपाध्याय जो कि नव्यन्याय के प्रवर्तक थे, ने विचार कर लिया था । कैलकुलस जिसे हम पश्चिम की देन मानते हैं, उसके जनक केरल के चौदहवीं सदी के गणितज्ञ माधव थे । ज्यादातर आधुनिक पश्चिमी गणितज्ञ इस तथ्य को स्वीकारते हैं । आपको यह मालूम होना चाहिए कि 2015 में जिस चीनी वैज्ञानिक को नोबेल दिया गया उनका पूरा शोध पारंपरिक चीनी जीव विज्ञान पर आधारित था । गणित में भारत के लिए पहला फील्ड्स मेडल जीतने वाले युवा गणितज्ञ मंजुल भार्गव ने एक साक्षात्कार में तमाम महान गणितज्ञों के प्रति सम्मान जताते हुए कहा था कि वो अपने दादा के भी ऋणि हैं जो वैदिक गणितज्ञ थे, जिनसे उन्होंने बहुत कुछ सीखा ।
बात यह है कि सारे खोज और शोध सिर्फ पश्चिम में ही नहीं हुए । हम कूपमंडूक न बनें लेकिन जो श्रेष्ठ था उसे फिर से क्यों न पढ़ें एक नई अंतर्दृष्टि से उस पर क्यों न विचार करें और गुनें। जानें कि भारत गणित, विज्ञान, दर्शन और भाषा के क्षेत्र में कहां था इस जानकारी को हासिल करने के लिए हमें प्राचीन ग्रंथों के सागर में उतरना ही होगा, जिसका तकरीबन शत प्रतिशत संस्कृत में है ।